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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit अट्टाहिकाचरणोंमें नमस्कारकरके मंदिरसे निकला बाहिरके प्रदेशमें बैठा उन्होंका कुल वगैरहः जाननेको मंत्रीसे आज्ञादिया सूर्ययशाव्या० मंत्रीभी राजाकी आज्ञासे उन्होंके पासमें जाके अमृतकेजैसीमीठीवानीसे वुलाके इसप्रकारसे बोला हे कन्यके तुम राजा कथा है कौनहो कौनतुम्हारा पतिः है यहां किसवास्ते आगमन हुआहै यहसर्ववृतान्तकहो बाद मंत्रीका वचनसुनके ॥२७॥ उन्होमें एकबोली हम मणिचूडविद्याधरःराजाकी पुत्रीहैं बाल्यअवस्थासेही कलाहीमें आदरवतीहुई क्रमसे यौव8/नअवस्था प्राप्तभई हमको देखके हमारापिता वरकी चिंता करनेलगा हम अपने शरीरकापतिःको नही प्राप्तहोती. भई ठिकाने ठिकाने तीर्थकरोंके चैत्योंको नमस्कारकर्तीहुई अपनाजन्मसफलकरेहैं ॥ वारंवार मनुष्यभव कहांहै यह अयोध्याभी तीर्थभूमि है इससे यहां श्रीभरतचक्रवर्तीका करायाहुआ मंदिरमें श्रीयुगादिदेवको नम|स्कारकरनेको हमारा आगमनभया ॥ ऐसे कहति भईको मंत्री कहताहुआ इस सूर्ययशाराजाके साथ तुम्हारा । संबंधश्रेष्ठःहै जिसकारणसे यह राजा श्रीऋषभदेवःखामीका पौत्रः है ॥ और भरतचक्रवर्तीका पुत्रः है सर्वःकलाहै संपूर्ण, सौम्य, सद्गुणी, बलवान् है इसलिये निश्चय श्रीऋषभदेवखामी तुम्हारे ऊपरसंतुष्टमानहुयेहैं जिस कारणसे सूर्ययशावरकी अकस्मात् प्राप्तिहुई। मंत्रीने ऐसे कहा तब वह कन्या बोली हम खाधीनपतिःको छोड़कर ॥२७॥ अन्यपतिका आश्रय नहीं करें तब अमात्यः राजाकीआज्ञासे उन्होंसे बोला तुम्हारा वचन अन्यथा कर्ताहुआ है राजाको मैं मनाकरूंगा ॥ मंत्रीने ऐसा कहनेपर उसीवक्त श्रीयुगादिदेव के मंदिरके सामने उन्होंका पाणिग्रह SANELECRECORECAX राजाकीआज्ञासे उन्हावह कन्या बोली हम साधाष्टमानहुयेहैं जिस-3 For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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