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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RotorORTOR निश्चय क्या प्रशंसतेहो जो सातधातुओंसे निष्पन्न हुआ शरीर अन्नसे जीनाजिसका वह देवोंकरके अचाल्य ऐसा कौन माने मेरे गानरसके पूरकरके किन्होंका विवेक प्रमुख गुणनहीं नष्टहोवे अपितुहोवेही ॥ वहांजाके सूर्ययशाराजाको टू मैं जल्दी व्रतसे भ्रष्टकरूंगी ॥ ऐसी प्रतिज्ञाकरके रंभासहित उर्वशीहाथमें वीणाधारती वर्गसे पृथ्वीपर उतरती भई।बाद अयोध्यानगरीके नजदीक उद्यानमें श्रीऋषभदेवः खामीके मंदिरमें मोहोत्पादक अतिअद्भुत रूपबनाके गाना कर्ती भई ॥ उनके गानेसे मोहितहुआ पक्षी, मृगः, सादिक आके चित्रलिखितके जैसे अथवा पाषाणघटित जैसे निश्चलनेत्ररहतेभये ॥ इधरसे श्रीसूर्ययशाराजा घोड़ाफिराके पीछे आताहुआ मार्गमें उन्होंकी अत्यन्तमधुरहै गानेकी धुनी सुनताभया तब घोड़ा, हाथी, प्यादल, पगमात्रभी चलनेको समर्थनहींहुआ ॥ यह खरूपदेखके राजा | | मंत्रीसे आदरसहितवोला अहो मंत्री संसारमें गानजैसा सुखदाई कोईनहीं दीसेहै । जिसकेवशसे यह पशुभी मोहित हुयेहैं ॥ नादसे देव, दानव, राजा, स्त्रीवगैरेह सवप्रायः वसहोवेहै । इसलिये अपनेभी श्रीऋषभदेवःस्वामीको नमस्कारकरनेको उसमंदिरमेंजावें वहां गयेभये यह गानेकाखादभी पावेंगे॥ऐसा विचारके उसगानसे मोहितहुआ राजा मंत्रीसहितः जिनमंदिरमें गया ॥ वहां हाथों में वीणाधारती गीतध्वनिकर्ती श्रीकामदेवकी स्त्रीजैसी दिव्यसौंदर्यवाली ऐसी दोकुमारिका देखके ॥ स्नेहकेचक्षुडाले ऐसे कामबाणोंसे हृदयमें वींधाहुआ राजा विचारताहुआ ॥ इन्होंका यह अद्भुतरूप किसपुण्यवान्के भोगकेवास्ते होगा ॥ तब राजा वारंवार उन्होको देखताहुआ श्रीयुगादीशके For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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