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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शवताणेकेवास्ते कथानककहतेहे जैसे वशंतपुरनगरमें अरिदमननामका राजा उसके ५ राणियोंथी उन्हों में 5 १ दुर्भागनीथी ४ अत्यंतवल्लभथी ( कथांतरमे ५०० राणीभीकहतेहे ) एकदा ४ राणीसहितराजा महेल के झरोखेमें बेठेहुवे अनेकप्रकारकी क्रीडाकरतेथे उसअवसरमें १ चोरको राजमार्गमें लेजारहेहे वो केसाहे कंठमें कनेरकीमालाहे लालवस्त्रपहराएहे रक्तचंदनकाविलेपनकियाहे आगे डिंडिमवादित्रवाजरहाहे | इसप्रकारसेनानाप्रकारकी विटंबनाहोतीहुई देखके राणीयोंनेपूछाकी इसने क्याअकार्यकीयाहे तब १ राजपुरुषने कहाकि इसने परद्रव्यहरनकरके राजविरुद्धकीयाहे तब उत्पन्नभईकृपाजिसको ऐसी १ रानी राजासे कहनेलगी हेखामिन् जो आपने मेरेकू पहलेवरदेनाअंगीकारकीयाथा सो इसवक्त देनाचाहिये जिससे में इसचोरका १ दिन उपकारकरूं तब राजा कथंचित् अंगीकारकीया तब उसरानीने उसचोरकुं नानादिककराके एकहजारसोनइया खरचकरके ग्रहणोंसे सुसोभितकीया बाद दूसरेदिन दूसरीरानीने राजाकी है आज्ञालेके दसहजारसोनइयाखर्चकरके उसचोरका सत्कारकीया उसके बाद तीसरेदिन तीजीरानीने लाख सोनइयाखर्चके चोरकाउपकारकीया चोथेदिन चोथीरानीने क्रोडसोनयेखर्चके चोरकीभक्तिकरी तब पांचवेदिन पांचमी दुर्भगारानी राजाकेपास आके विनयसेंनम्रहोके दीनवचनोसे राजाको विनतीकरी 8 हेखामी ? मेंदुर्भागिनीहुं इसलीये मैंने आपकेपासकभी मागानहि इसवक्त इसचोरको जीवितदान में आपके - - For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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