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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ROACHARACROSS करना ( वाग्दुःप्रणिधान ) २ नहि पडिलेहे हुवेस्थान में हाथ वगरेह रखना ( कायदुःप्रणिधान ) ३ सामायिक करके मूहुर्ततक सुद्धभावमें नहिरहना ( अनवस्थान ) ४ मेने सामायककिया यानहिसो (स्मृतिविहीनता)18 ५ अब १० में देशवगासीव्रतमें ५ अतिचार जैसे दूसरेकू कहे तेरेकुं यहपदार्थलाना ऐसाकहके अभिग्रहदेशसे बाहरका वस्तुमंगाना ( आनयनप्रयोग) १ तें मेरा यहवस्तु घरवगरेहमें पहुचाना ऐसाकहके अपने पासकीवस्तु । अभिगृहीतदेशसे और ठिकानेभेजे (प्रेश्यप्रयोग) २ कोईकार्यकेवास्ते आतादेखके अपना कार्यकरानेकेलिये शब्दकरना (शब्दानुपात) ३ उसीतरह दूसरेकुं अपनारूपदिखाके कार्यकरना (रूपानुपात) ४ अभिग्रहहै देशसेवहिर कार्यजनानेकुं कांकरावगेरहफेकना) पुद्गलक्षेप) ५ अब ११ में पोषधव्रतमें ५ अतीचार जैसे नहि है पडिलेहेहुवे याठीकनहिपडिलेहेहुवे सिझावगैरेह का सेवना १ नहिप्रमार्जन कीया हुवा या ठीक नहि प्रमार्जाहुवा सिझादिकका सेवना २ नहिपडिलेहिहुईभूमीपर उच्चार प्रश्रवणका परठाना ३ नहि प्रमार्जीहुईभूमीपर मलादिककापरठना ४ प्रभातसमय अमुकआहारकरूंगा ऐसाविचारना ५ अब १२ में अतिथिसंविभागव्रतमें ५ अतिचार जैसे साधुको आताहुवा देखके नहिदेनेकी बुद्धिसे देनेयोग्यद्रव्यको सचित्तपररखना १ सचित्तफल8|दिकसे देनेयोग्यवस्तुकोढकना २ मोदकवगरेहअपनेहें और दूसरेका कहना ३ जो इसनिर्धननेंदिया तो क्यामें तकमहुं ऐसे अभिमानसेदेना ४ आहारलाके भोजनकरतेहुवे साधुवोंकी निमंत्रणाकरनी जैसे मेराअभिग्रहभी AAAAAAAAAACAR For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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