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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातु मासिक ॥ १५॥ SASSASSASSARISSASI करना २ पूर्णअवधीमें लेढुंगा ऐसीबुद्धिसें, सोना रूपावगेरे स्त्रीको देना ३ ओरे थालीवगेरे १० तोडाके ५ करना व्याख्याद वगेरे ४ पहले सामान्यप्रकारसे नियमकरके पीछे गर्भसहित द्विपदचतुस्पदका ग्रहणकरना, अब छठेदिशापरिमाण नम्. नाम गुणवतके ५ अतिचार जैसे ऊर्यदिशी अधोदिशी तिर्यदिशी प्रमाण अतिक्रमण करके, और वस्तु मंगाने औरभेजनेकरके ३ अतीचार, औरदिशीकायोजन और दिशीमें मिलानेसे क्षेत्रवृद्धी ४ दिशीकापरिमाण कियाहुवा भूल जावे सो स्मृतिअंतर्धान ५, अवसातमा भोगोपभोगपरिमाणव्रतमें ५ अतिचार जैसे सचित्तभक्षणकानियम-15 किया अथवा सचित्तकापरिमाणकियापुरुष दाडमआदि जो सचित्तवस्तुकोखावे १ पकाहुवाआम्रफलादि गुठली समेतचूसना २ नहिछानाहुवा आटावगेरहकाखाना अप्पोलकहाजावे ३ पूंखवगरेह दुप्पोलकाखाना ४ जिससे ६ तृप्तिनहोवे ऐसीऔषधीखाना ५ अब (८) आठमाअनर्थदंडविरमणव्रतके ५ अतीचार जैसे. कामोद्दीपकशास्त्रका अभ्यासकरना (कंदर्प)१ मुखनेत्रभुवे वगेरे की विकारपूर्वक भांडवत् चेष्टाकरना (कौकुच्य)२ गालीवगेरहअसंबद्ध विनाबिचारेबोलना ( मौखर्य) ३ उखल मूसल घट्टी वगरेह एकठैकरके रखना (संयुक्ताधिकरण) ४ स्नानादिकके समयमें जादा तेलमट्टीवगरेहकी सामग्रीमंगाना सरोवरादिकमे नाहना पृथिव्यादिककी विराधना ॥१५॥ करना ( भोगोपभोगातिरेक ५) अब नवमें सामायिकव्रतके ५ अतिचार जैसे मनमें पापव्यापारविचारना (मनोदुःप्रणिधान)१ विकथा For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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