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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चातु मासिक ॥ १४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुवे श्रावकादिकको स्थिर नहि करना ६ साधर्मियोंका वात्सल्य नहि करना ७ सामर्थ्यरहते जिनशासनकी ६ प्रभावना नहि करना ८ ये दर्शन के ८ अतिचारकहे, अत्र चारित्र के ८ अतिचारकहते हैं ५ समिति इर्यासमितिआदिक और तीनगुप्ति मनोगुप्तिआदिक को बरावरनहिपालने में चारित्रके ८ अतिचारहोते हे तथा उपवासादिक ६ बाह्यतप प्रायश्चित्तादि ६ अभ्यंतरतपको यथोक्तनहिकरने से तपके १२ अतिचार होते हैं. मनोवीर्य १ वचनवीर्य २ कायवीर्य ३ इन्होंको देववंदन प्रतिक्रमण स्वाध्याय दानशीलांदिक में नहिफोंरनेसे वीर्यके ३ अतिचारहोते हे और सम्यक्त्व के ५ अतिचार तीर्थकरों के कहे हुवे पदार्थों पर शंकाकरना ( संका ) १ और अन्य अन्य मतों की अभिलाषा (कांक्षा) २ धर्म के फल में संदेह करना (वितिगित्सा) तथा मल मलीन वस्त्र सरीखाले साधुवों को देख के जुगुप्सा करना (वितिगित्सा) ३ मिथ्या दृष्टियों की प्रशंसा करे सो (कुलिंगी प्रशंसा ) ४ मिथ्या दृष्टियो के साथ परिचयकरना ( कुलिगिसंस्तव) ५ अब १२ व्रतों के ६० अतिचार कहतेहे. वहाँ पहेलास्थूलप्राणातिपात विरमण व्रतके ५ अतिचार जैसे (१) निर्दयपने से पसुवगेरहको लकडीसे पीटना (वध) (२) डोरी वगेरह से मजबूत बांधना (बंध) ( ३ ) ( कानवगरह काटना वृषणछेदकरना । छबिछेद ) छबिसरीरउसका छेदना ऐसीव्युत्पत्ति होनेसें ( ४ ) बेलों परजादह भारलादना ( अतीभार ) ( ५ ) बैल वगेरहको वक्तपर अन्नजलचारा नहि डालना - ( भक्त पानव्यवछेद ) स्थूलमृपावादविरमणत्रत में पंच अतिचार जैसे ( १ ) तै चोरहे जारहे इत्यादि दूसरे को For Private and Personal Use Only व्याख्यानम्. ॥ १४ ॥
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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