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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातुमासिक ॥१३॥ काशंसा कहिये) (२) इसअनुष्ठानसेपरलोकमें इंद्रादिकहोऊं (यह परलोकाशंसा) (३) मेने अनशनकिया| व्याख्यालोकोंमें पूज्यहुं इससे बहुतकालतकजीयूँ तो ठीकहै ( यह जीविताशंसा) (४) अनसन कीयाहे मगर कोई नम्. है पूजतानहिहे आधिव्याधी से पीडितहोनेसे जल्दीमरूं तो ठीकहे (यह मरनाशंसा)(५) रूप १ शब्द २ काम कहेजावे गंध १ रस २ स्पर्श ३ भोगकहेजातेहे ये मेरे प्रशस्तहोवे ऐसीइच्छा (कामभोगाशंसा ) संलेखणाकरके ऐसाविचारे तो अतिचारहोताहे. इन्होंमें जोकोई तीनकालसंबंधीअतिचारलगा होवे उसकामुझे मिच्छामिदुक्कडं | है होवो ऐसा संघादिसमक्षकहना ऐसे आगेभी कहना। ___ अब १५ कर्मादानके अतिचारकहतेहैं (१) आजीविकादिनिमित्त काष्ठजलाके कोयलाकरना इंटाँ चूना वगेरहपकाना और वेचना ( यह इंगालकर्म) (२) वृक्षादिकोंके पत्रपुष्पादिककाटके वेचना (वनकर्म) (३) गाडी गाडोंके अंग नयेबनाके वेचना ( सकटकर्म) (४) गाडे बेलवगैरह भाड़ेदेना वो (भाटककर्म) (५) प्रहल कुद्दाले आदिक से जमीनखोदना पाषाणवगेरहघडना जबवगेरहधानभंजना (स्फोटककर्म (६) पहेलेसेहि। म्लेछादिकोंको द्रव्यदेके हाथीके दांत वगेरहमंगवाके बेचना अथवा आपआकरमें जाके लेआना और वेचना ॥ १३ ॥ (दंतवाणिज्य) (७) लाख नीली मणसिलादिक सुलेहुवे धान वगेरहका वेचना ( लाक्षावाणिज्य) (८) मदिरामांस घी तेलादि रसोंका वेचना ( रसवाणिज्य) (९) जिसके खानेसे मरजाय उसको जहर कहते है। For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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