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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **** SACARSCALCOMCACCECASCCC क्रीड़ा करती भईको गुरूने देखा और गुरू बोले हे पुत्रियो तुम धर्म करो तुम्हारा आयुः एकदिनका है तब |कन्याए बोली हे भगवन् एक दिनमें क्या धर्म होवे गुरू बोले आज शुक्लपंचमी है उपवास करो अपने घर जाके दादेवपूजा करके ज्ञानको आराधन करो शुभअध्यवसायमें रहो उन्होंने घर जाके वैसाही किया बाद उस दिनकी 3 ते रात्रिमें वीजलीपड़ी चारोकन्यामरके पहले देवलोकमें देवभई वहांसे च्यवके तुम्हारे यह चार पुत्रियां भईहैं। बाद यह सब बात सुनके राजाको जातिःस्मरण ज्ञान भया परिवारसहित राजा रुप्यकुंभ स्वर्णकुंभ गुरूको नमस्कार करके और विनतीकरी हे प्रभो रोहिणीतपका विधिः कहो तब गुरू बोले सोमवार रोहिणीनक्षत्र जबआवे तब विधिःसे तप ग्रहण करना रोहिणी नक्षत्रके दिन उपवास करना दो वक्त प्रतिक्रमण तीनटंक देववंदन श्रीवासपूज्यखामिने नमः इस पदका दो हजार जपकरना बारह या सत्ताइस लोगसका काउसग्ग प्रदक्षिणा खमासमनवगैरहःविधिः करना त्रिकालदेव पूजा करना प्रभुःके आगे अष्टमंगलीक और अशोक वृक्ष चढाना तप पूर्ण होनेसे उज्जमना करना ज्ञान दर्शनचारित्रके उपगरन सत्ताईस सत्ताईस कराके चढ़ाना ॥ सामीवत्सलकरना संघपूजा करनी जिनशासनकी उन्नतिः करनी ऐसाविधिः गुरुमुखसे सुन राजा रानी वगैरहाने रोहिणीका तप अंगीकार किया विधिःसे रोहिणी तपकरके तप सम्पूर्णहोनेसे बहुतविस्तारसे उज्जमना किया वादमें| *CHIRAISHIGA For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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