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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा दीवा० 8 करके आयुःक्षयमें समाधिःसे मरणपाके बारहवें देवलोकमें अच्युतइन्द्र भया वहांसे च्यवके ते अशोकचन्द्र रोहिणी व्याख्या 14 नामका राजा भया इस रोहिणीरानीका पतिः अत्यन्त वल्लभ भया तुमने रोहिणी तप किया इससे तुम्हारे परस्पर 81 अधिकस्नेह भया अब तैं पुत्रोंका कारण सुन मथुरा नगरीमें अग्निशर्मा नामका ब्राह्मण रहताथा उसके सात पुत्र थे ॥८८॥ परन्तु दरिद्री थे। एकदा पाटलीपुरमें सातो भाई भिक्षाके लिये जाते थे तब बगीचेमें कोई राजकुमरको सुंदर स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करताहुआ देखके शिवशर्मा ब्राह्मण अपने भाइयोंसे कहने लगा कि देखो विधिःने कितना अंतर किया है यह राजकुमर मनोवांछित सुखभोगवता है अपने तो घर घर भिक्षाके लिए फिरते हैं तब एक भाईने कहा इसविषयमें किसको उपालंभ दियाजाय पूर्वभवमें अपने पुण्य नहीं किया है इस राजकुमरने सुकृत कियाहै इस कारणसे यह सुखभोगवताहै। तब उन सातों ब्राह्मणके पुत्रोंने जीवदयायुक्तधर्मपालके अंतमें सुगुरूके पास है दीक्षा लेके चारित्रपालके समाधिःसे मरणपाके सातवें देवलोकमें देव भए वहांसे च्यवके गुणपाल वगैरहः तुम्हारे सातपुत्र भए ॥ और आठवें पुत्रका जीव वैताढ्य पर्वतपर क्षुल्लक नामका विद्याधरथा । वह निरंतर नंदीश्वरदीपमें शाश्वती जिनप्रतिमाओंकी पूजा करताथा और भी धर्मकार्य करताथा वह विद्याधर मरके सौधर्मदेवलो-one कमें देव हुआ वहांसें च्यवके तुम्हारे यह लोकपाल नामका आठवांपुत्र हुआ अब चार पुत्रियोंका सम्बन्ध 8 सुनो वैताब्य पर्वतपर एक विद्याधर था उसके चार पुत्री थीं रूपवती, गुणवती थीं ॥ एकदा प्रस्तावमें बनमें| कारणसे यह सूखममाधिःसे मरणपाकं सालक नामका विद्या भरके सौधर्मद For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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