SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधूनां दर्शनं पुण्यं, तीर्थभूता हि साधवः । तीर्थ फलति कालेन, सद्यः साधुसमागमः ॥१॥ | अर्थ:-साधुओंके दर्शनसे पुण्य होवे है साधुः तीर्थभूत है तीर्थ जो है सो कालसे फले है और साधुसमागम सद्यः फले है ॥ १॥ यह निष्पृहि मुनि है इनको दान देनेसे बड़ा फल होवेहै ऐसा विचारके राजा अपनी/8 स्त्रीसे बोला हे वरानने इस मुनिःको नमस्कारकरके दान देओ ऐसा राजाका वचन सुनके क्रीड़ामें अंतराय मानके ऊपर हर्ष धारती भई अन्तःकरण दुष्ट जिसका ऐसी रानीने कड़वीतूंवीका साग मुनिःको दिया मुनिने पारना किया | उसके खानेसे मुनिः मरण पाया शुभ ध्यानसे मुनिः देवलोक में देवहुआ ॥ यह बात सुनके राजाने रानीको अपने 8 * देशसे बाहिर निकाली रानी सातवें दिन कोढ़नीभई बहुत कालतक लोगोंकरके निंद्यमान मरके छट्ठी नरक गई। वहांसे निकलकर रानीका जीव तिर्यञ्चयोनि में उत्पन्न हुवा।बहुत दुःख भोगवके सातमी नरकगया ऐसे सब नरकमें क्रमसे उत्पन्न भई वाद । सर्पणी, ऊटनी, स्थालनी, कुक्करी, सूकरी, गृहकोकिला, जलौका, ऊंदरी, कन्वी, कुत्ती, बिलाडी, रासभी । गौः भई इन भवों में प्रायः अग्निः शस्त्रघातादिकसे मरण हुआ। गायके भवमें मरनेकी वक्त गुरुके मुखसे नवकार सुनके अनुमोदना करतीभई मरण पाया इससे मनुष्यनी भई । दुर्गन्धा दुर्भगा तेरी पुत्रीभई ॥ बाद दुर्गन्धा अपना पूर्वभव देखके हाथ जोड़के गुरूसे पूछे हे खामिन् मैं इस दुःखसे कैसे छूटुंगी सोआप कृपाकरके कहो तब मुनिः बोले तै दुःखको दूरकरनेवाला ऐसा रोहिणीका व्रतकर वह बोली हे भगवन् किस विधि से For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy