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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लीक सामंत सेठ सार्थवाह वगैरहः बहुत लोग वंदना करनेको आए श्रीगणधरदेव धर्मदेशना देतेभए उस समय एक शोकसहित सजल नेत्र जिसके चिंतातुर दीन स्त्री आई उसके साथ दुर्भगा विधवा एक कन्याभी आई श्रीपुंडरीक गणधरको नमस्कार करके अवसर पायके कन्यासहित स्त्रीने पूछा हे भगवन् इस कन्याने पूर्वभवमें क्या पाप किया जिससे विवाह समय करमोचन वक्तमेंही इसका पति मरा ऐसा प्रश्न करनेसे गणधर बोले हे भद्रे अशुभ कर्मका अशुभही फल होवे है सो दिखाते हैं जम्बूद्वीप पूर्वमहाविदेह क्षेत्रमें विश्वविख्यात मनोरम कैलाश पर्व-13 तके सदृश ऊंचे गड़से वेष्टित बहुत देशोंके लोग जिसमे रहें ऐसा विशालशालाघरोंकरके मंडित चन्द्रकान्त नामका नगर होता भया वहां लक्ष्मीका धाम सर्वकला गुणका स्थान जगत्प्रसिद्ध समरसिंह नामका राजा भया उस राजाके शील अलंकार धारणेवाली धारणी नामकी रानी होती भई उस नगरमें महा धनाढ्य परमश्रावक जिनम|क्तिमें रक्त अनेकगुणोंका सागर ऐसा धनावह नामका सेठ भया उसके कर्मयोगसे दो स्त्रियां थीं पहली कनकश्री दूसरी मित्रश्री उन स्त्रियोंके साथ सेठ सुखसे काल व्यतिक्रान्त करे एकदा कामसे परवश भई कनकधी मित्रश्रीका वारा उलंघके भर्तारके पासमें गई तब पतिः बोला आज तेरा वारा नहीं है तैने मर्यादाका कैसे उल्लंघन किया दूतब कामविह्वल कनकधी बोली क्या यह मर्यादा है तब भार बोला सतकुलमें उत्पन्न भयेको मर्यादा उलंघना युक्त नहीं है समुद्रभी मर्यादा नहीं छोड़ताहै ॥ सत् पुरुष अपनी मर्यादासे नहीं चलते हैं बाद वह संतोपरहित | ABCHCHEMOCRACLOCALOCAL For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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