SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होलिकापर्वका व्याख्यान. दीवा. हुआ होलिकापर्व जानके बुद्धिमान् भव्यात्मको शुभके वास्ते वह नहीं करना किंतु उसदिन व्रत उपवासादिजिन पूजादि- व्याख्या पौषध प्रतिक्रमणादिधर्म कार्य करना होलिका सम्बन्धी लौकिक कार्य कुछभी नहींकरना जोहोलिकाकी ज्वालामें| गुलालकी एक मुट्ठीडाले उसको दश उपवासका प्रायश्चित्तहोवे हैं एक कलशप्रमाणे जल डालनेसे सौ उपवासका प्रायश्चित्त होवे है मूत्र डालनेसे पचास उपवास छाना डालनेसे पचीस उपवास एक गाली देनेसे पन्द्रहउपवास असभ्य गीत गानेसे डेढ़सौ उपवास वादित्र बजानेसे सत्तर उपवास एक छाना डालनेसे वीस उपवास छानोंका हारडालनेसे जन्मान्तर सौवक्त अपना शरीर भस्म होवे श्रीफल डालनेसे हज़ार वक्त भस्म होवे ॥ एक सुपारीका फल डालनेसे पचासवार धूली डालनेसे पञ्चीसवार होलिलाके लिये खड्डाखोदनेसे सौयार होलिकाका खड्डा काष्ठसे भरनेसे हजारों बार जन्मान्तरमें भस्म होवेहै होलिका जलानेसे हजारों चाण्डालके भवमें उत्पत्ति होवेहै होलिका व्रत करनेवाला हजारों वार म्लेच्छ कुलमें उत्पन्न होवे हैं इसप्रकारसे पाप जानके कल्याणके अर्थी आत्म हितेच्छुः श्रद्धालुः जनोंको ए द्रव्यहोलिकाका त्याग करके भावहोलिकाहीआराधना उसीसे इसभवमें परभवमें हुवांछित अर्थकी सिद्धिः होवे इतने कहने कर होलिकाका व्याख्यान कहा ॥ अग्रेतनवर्तमानयोगः ॥ CACHECORRC-RRCREACOCACCRESEARCH ACCIRCHIRAGARIGANGARH For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy