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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशमी, एकादशी तीनदिन एकाशनाकरना ॥ जमीनपरसोना ब्रह्मचर्य पालना | दोटंक प्रतिक्रमणा देववंदन जिनमंदिरमें त्रात्रादि महोत्सव करना ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ अर्हते नमः इस पदको दोहजार ( २००० ) वक्त गुणना || पारनेके दिन खामीवच्छ करना ऐसे दशवर्षतक विधि से यह तपकरना ऐसे आराधन करनेसे इसलोकमें धनधान्य सौभाग्य आदिक और परलोक में स्वर्गसुख और क्रमसे मोक्षसुख पाये है | ऐसा सुनके हर्षके | प्रकर्षसे विकसित हुआ है नेत्र जिसका ऐसा सेठ जैनधर्म अंगीकारकरके गुरुको वंदनाकरके अपने घर गया ॥ आचार्य अन्यत्र विहार करगए | सेठने दशमीका तपकरना प्रारंभ किया || दशमहीने जानेसे कालकूटद्वीपसे | जहाज आए नौकरके मुख से सुनके सेठने नहीं माना तब सेटकी स्त्री शीलवतीने कहा हे स्वामिन् यह सत्यही जानो । असत्य नहीं है इसकारणसे आज अपने घरमें निधान प्रगटहोगा । तब सत्यसमझना । ऐसा कहके निधान देखा निधान प्रगटहुआ तबसेट अपनी स्त्रीसे बोला हे प्रिये जैनधर्मके प्रभावसे जहाजोंकी बधाई आई इग्यारह करोड़ सोनइय्योंका निधान प्रकट हुआ ॥ श्रीपार्श्वनाथस्वामी के प्रसादसे और गुरुके उपदेश से मैं श्रीमान भया ॥ बाद जैनधर्मकी वासना से सुखसे कालगमाते ॥ नगरसेठ पदवी पीछे पाई ॥ सेठ के दशपुत्रभये राजा सत्कार | करके अपने पास में रक्खा | एकदा प्रस्ताव में देवेन्द्रसूरिः बिहार करतेभये वहां समवसरे ॥ सेठ बांदनेकोगए ॥ औरभी नगरके लोग बांदनेको गए वंदना करके यथास्थान बैठे गुरूने देशनादिया देशना के अंत में सेठने प्रश्न किया है For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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