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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit - अर्थः ॥ जयनासे चलना जयनासे खड़ारहना जयनासे बैठना ॥ जयनासे सोना जयनासे भोजन करताहुआ और बोलता हुआ पापकर्म नहीं बांधे ॥१॥ इसप्रकारसे पवित्रचारित्रपाले ॥ तथा विशेषसे छद्र अटमादि तपकिया उसकी संख्या लिखतेहैं ॥ जनिते द्वेशते षष्ठे, अष्टमानां शतं तथा । चतुष्टयं चतुर्मास्या, एकं पाण्मासिकं तपः॥१॥ __ स मौनैकादशीतिथ्यास्तपस्तपन् विशेषतः। पाठको द्वादशाङ्गीनां शुद्धां दीक्षामपालयत् ॥ २॥ ___ अर्थः-दोसौ छट्टयाने वेला, एकसौ अट्ठम याने तेला, चार चौमासीतप एक छमासी तप इतना विशेष तपकिया ॥१॥ सुव्रतमुनिः विशेषसे मौनएकादशीका तपकरताहुआ द्वादशाङ्गीका अध्ययन किया ॥ शुद्धदीक्षा 8 पालताभया ॥२॥ एकदा मौन एकादशीकेदिन सुव्रतसाधुः मौनसहित तपकिया है ॥ उसकी परीक्षाकवास्ते कोई मिथ्यादृष्टिदेव कोई साधुःके कानों में बहुत वेदना उत्पन्नकरी बहुत इलाजकिया तथापि शान्ति भई नहीं तब उस देवने साधुओंके आगे कहा इस साधुकी वेदना सुव्रतमुनिःकी औषधसे मिटेगी ॥ जो यह सुव्रतमुनिः खस्थानसे बाहिर जाके औषध लाकेइलाज करेगा ॥ ऐसा सुनके वह साधुः सुव्रतमुनिःके पासमें आके उपचारकेवास्ते कहा ॥ सुव्रतमुनि मौनी एकादशीको अपने ठिकानेसे बाहिर नहीं जावे ॥ बाद देवके प्रभावसे है पीड़ित साधुःने सुव्रतसाधुके मस्तकमें प्रहारदिया॥ बहुत वेदना उत्पन्नभई परन्तु मुनिःने सही और विचारने लगा। RIKARANASANA For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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