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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा० व्याख्या दीक्षा गृहीतादिनमेकमेव, येनोग्रचित्तेन शिवं स याति । मौन एकान तत् कदाचित्तदवश्यमेव वैमानिकः स्यात् त्रिदशप्रधानः॥२॥ दशीका व्याख्यान. अर्थः चारित्ररत्नसे दूसरा विशेष रत्न नहींहै चारित्रधनसे कोई धन जादा नहीं है चारित्रलाभसे उत्कृष्ट कोई लाभ नहींहै चारित्रयोगसे उत्कृष्ट कोई योग नहींहै ॥ १॥ प्रवर्धमान परिणामसे दीक्षाग्रहणकरके एक दिन जो चारित्रपाले तो मोक्षजावे ॥ कदाचित् मोक्ष नहींजावे तौभी वैमानिक देव तो अवश्यहीहोवे । इत्यादि है देशना सुनके सुव्रतसेठ बोला हे तारक मैं संसार कांतारसे उद्विग्नभयाहूं इसवास्ते पुत्रको घर सम्भल्हाके आपके-* |पास दीक्षालेउंगा ॥ ऐसा सुनके गुरु बोले हे महानुभाव जैसा सुखहोय वैसा करो ॥ परंतु धर्मकार्यमें देरीकरना। नहीं ॥ बाद सेठ आचार्यको नमस्कारकरके अपनेघरजाके कुटुम्बको भोजनकराके ॥ अपने खजन और पुत्रोंसे | दीक्षाकी आज्ञालेके इग्यारहस्त्रियोंकेसाथ महोत्सव करके दीक्षालिया ॥ विशेषतपकरताहुआ सुव्रतमुनि ग्रहण आसेवनशिक्षाग्रहण करके साधुधर्ममें विचरा ॥ इग्यारहस्त्रियों विशेष तपकरके शरीरको दुर्बलकर एक मही-10॥६३ ॥ |नेका अनशनकरके केवलज्ञान पायके मोक्षगई सुव्रतमुनिः साधुधर्म पालताहुआ सुखसे विचरे ॥ कहाहै जयं चरे जयं चिट्रे, जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो भासंतो, पावकम्मं न वंधई ॥१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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