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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०९) सत्य साधनतणो रे, मारग पामे नाहीं ॥ जि०॥२॥ मतिभेदे भमता फिरे रे, सत्य न भाषे मूढ । सूत्र परम्परा छेदीने रे, भाषे स्वीयमत रूढ ।। जि० ॥३॥ अपवाद थापे पापीया रे, छन्दे वदे स्याद्वाद । बहु अन्नाणी प्राणिया रे, तेहने बहु विषवाद ।। जि० ।। एहवामां मुझने तुमो रे, सत्य स्वरूप बताय । सरिराजेन्द्रजी धारश्यो रे, तारण विरुद धराय ॥ जि० ॥ ५॥ ६४. सिद्धाचलचैत्यवन्दन । सिद्धाचल बन्दो भवि, सिद्ध अनन्तनो ठाम । अवर क्षत्रमा एहवो, तीर्थ नहीं गुणधाम ॥१॥ पूर्व नवाणुं ऋषभजिन, आव्या तीरथ एह ।। नेम विना सहु जिनपति, फरसे गिरि शुभ नेह ॥ २॥ नाम इंगवीस जपे भवि, पामे भवनो पार । सूरिराजेन्द्रपणो लही, मोक्ष श्री भरतार सिद्धाचलजिनस्तुति । विमलाचल शिवसुख दाता, भाव धरी नित वन्देजी। शत्रुजादिक इगवीस नामे, जपतां दुरित निकन्देजी । सिद्ध अनन्ता इण गिरि सिद्धा, कहेतां पार न आवेजी । मन वच काया शुद्ध करीने, सेव्यां शिवमुख पावेजी ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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