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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०८) से सिद्धाचलजी का चैत्यवन्दन, स्तवन, स्तुति कहना । बाद में सामायिक पारने की विधि से सामायिक पारना, इति । ६३. श्रीसीमन्धरजिनचैत्यवन्दन । परम शुद्ध परमात्मा, परमज्योति परवीन । परमतत्व ज्ञाता प्रभु, चिदानन्द सुख लीन ॥१॥ विद्यमान जिन विचरतां, महाविदेह मझार । सीमन्धर आदि सदा, वन्दु वारंवार ॥ २ ॥ जे दिन देखश्युं दृष्टि में, ते दिन धन्य गिणेश । सूरिराजेन्द्रना संगथी, काटीश सकल किलेश ॥ ३॥ सीमन्धरजिनस्तुति सीमन्धर सेवो, कर्मविदाहरण देव भविजीवां तारक, वारक मिथ्या टेव । अतिशय धुनि गाजे, राजे बहु गुणवन्त सूरिराजेन्द्र बन्दे, विहरमान भगवन्त ॥ १ ॥ सोमन्धरजिनस्तुति ( कपूर होय अति उजलो रे, ए राह ) महाविदेह में विचरता रे, सीमन्धर जिनराय । सुर नर विद्याधर सहु रे, वन्दे जेहना पाय ॥१॥ जिनेश्वर तुम दरिसण चित चाह, पुन्य उदयथी थाय जि० ॥टेर ॥ भरत माहीं भवि प्राणिया रे, तुम विण संशय माहीं । धरम For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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