SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । ... सन्निपातेऽर्कमूलं स्यात्साज्यं वा लशुनौपणे ! द्वाविंशल्लंघनं कार्य चतुर्थांश तथोदकम् ।। - सन्निपातमें प्राककी जड़ पीसकर घीके साथ खावे या लहसन और सोंठ मिलाकर खावे, तथा बाईस लंघन करे और सेरका पाव भर रहा पानी पीवे । (३०) मदारकी जड़, कालीमिर्च और अकरकरा--सबको समानसमान लेकर खरलमें डाल, धतूरेकी जड़के रसके साथ घोटो और चने-समान गोलियाँ बनाकर छायामें सुखा लो । हैजेवालेको दिनमें चार-पाँच गोली तक देनेसे अवश्य लाभ होगा। परीक्षित है । 00000000000000०००.००० ४ ००००० * 0000000000 °000maaranbe.०१..8 डंडी मोटी और काट थूहर या सेंहुड़का वर्णन और उसके विषकी शान्तिके उपाय । **** *********** ....०० हर और सेंहुड़ दोनों एक ही जातिके वृक्ष हैं । सेंहुड़की डंडी मोटी और काँटेदार होती है और पत्ते नर्म-नर्म पथरचटेके जैसे होते हैं। दूध इसकी शाखा-शाखा o और पत्ते-पत्तेमें होता है । थूहरकी डण्डी पतली होती है और पत्ते भी छोटे-छोटे, हरी मिर्च के जैसे होते हैं। इसके सभी अङ्गोंमेंसे दूध निकलता है। इसकी बहुत जाति है--तिधारा, चौधारा, पचधारा, षटधारा, सप्तधारा, नागफनी, विलायती, आँगुलिया, खुरासानी और काँटेवाली-ले सब थूहर पहाड़ोंमें होते हैं। ___ थूहरका दूध उष्णवीर्य, चिकना, चरपरा और हलका होता है । इससे वायु-गोला, उदर-रोग, अफारा और विष नाश होते हैं । कोढ़ और उदर-रोग आदि दीर्घ रोगोंमें इसके दूधसे दस्त कराते हैं और लाभ भी होता है; पर थूहरका दूध बहुत ही तेज़ दस्तावर होता है। ज़रा भी जियादा For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy