SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा--"आक"। ६१ तक पकायो, जब तक कि पानीका नाम भी न रहे। कढ़ाहीमें जो सूखा हुआ पदार्थ लगा मिलेगा, उसे खुरच लो, वही खार या क्षार है । __(२१) मदारकी जड़ ३ तोले, अजवायन २ तोले और गुड़ ५ तोले--इन्हें पीसकर बेर-समान गोलियाँ बना लो । सवेरे ही, हर रोज, दो गोली खानेसे दमा आराम हो जाता है। (२२) आकके दूध और थूहरके दूधमें, महीन की हुई दारुहल्दीको फिर घोटो; जब चिकनी हो जाय, उसकी बत्ती बना लो और नासूरके घावमें भर दो । इस उपायसे नासूर बड़ी जल्दी आराम होता है। नोट - जब फोड़ा आराम हो जाता है, पर वहीं एक सूराखसे मवाद बहा करता है, तब उसे "नासूर" या "नाड़ी व्रण" कहते हैं। (२३) अगर जंगलमें साँप काट खाय, तो काटी जगहका खून फौरन थोड़ा-सा निकाल दो और फिर उस घावपर आकका दूध खूब .डालो । साथ ही आकके २०१२५ फूल भी खा लो। ईश्वर-कृपासे विष नहीं चढ़ेगा। परीक्षित है। (२४) अगर शरीरमें कहीं वायुके कोपसे सूजन और दर्द हो, तो आकके पत्ते गरम करके बाँधो । ( २५) अगर कहींसे शरीर सूना हो गया हो, तो आकके पत्ते घी या तेलसे चुपड़कर सेको और उस स्थानपर बाँध दो। (२६) आकके फूलके भीतरकी फुल्ली या जीरा बहुत थोड़ा-सा लेकर और नमक में मिलाकर खानेसे पेटका दर्द, अजीर्ण और खाँसी आराम हो जाते हैं। एक बारमें ३।४ फुल्लीसे जियादा न खानी चाहिये (२७) आकके पत्ते तेलमें चुपड़कर और गरम करके बाँधनेसे नारू या बाला आराम हो जाता है। (२८) पाकका दूध कुत्तेके काटे और बिच्छूके काटे स्थानपर लगानेसे अवश्य आराम होता है । ( २६ ) सन्निपात रोगमें आककी जड़को पीसकर, घीके साथ खानेसे सन्निपात नाश होता है । कहा है For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy