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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा--"आक"। ५५ (घ) दूध और चूनेका नितरा हुआ पानी बराबर-बराबर मिलाकर पिलाओ। (ङ) जलन मिटानेको बर्फ और नीबूका शर्बत पिलाओ अथवा चीनी मिलाकर पेठेका रस पिलाओ इत्यादि । सूचना-अफ़ीमके विषपर भी कय करानेको यही उपाय उत्तम हैं। हरताल और मैनसिल ये दोनों संखियाके क्षार हैं । इसलिए इनका ज़हर उतारने में संखियाके ज़हरके उपाय ही करने चाहियें। चूनेका छना हुआ पानी और तेल पिलानो और वमनकी दवा दो तथा राईका चूर्ण दूध और पान में मिलाकर पिलायो । शेष, वही उपाय करो, जो संखियामें लिखे हैं। (१२) गर्म घी पीनेसे संखियाका जहर उतर जाता है । (१३) दूध और मिश्री मिलाकर पीनेसे संखियाका विष शान्त हो जाता है। नोट--बहुत-सा संखिया खा लेनेपर वमन और विरेचन कराना चाहिये । ०००००००००००००००.....००० १०००००००००००००००००००००००००००० 04.000000००० "०००. °0000000ona200000000000000000330००%89 00000000sess १० Go-8° °00000ana03200000 P000000000०.००.07.06daar 33000000000000032006 प्राकका वर्णन और उसके विषकी शान्तिके उपाय । 000000 GO00000000000033000 ०००००००० '000,000 ० .. . ००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००.००% XXXY कके वृक्ष जंगलमें बहुत होते हैं । आक दो तरहके होते T हैं:-(१) सफ़ेद और (२) लाल । दोनों तरहके आक Xxx दस्तावर, वात, कोढ़, खुजली, विष, व्रण, तिल्ली, गोला, बवासीर, कफ, उदर-रोग और मल या पाखानेके कीड़ोंको नाश करनेवाले हैं। . सफ़ेद आक अत्यन्त गर्म, तिक्त और मल-शोधक होता है तथा मूत्रकृच्छ, व्रण और दारुण कृमि-रोगको नाश करता है। राजार्क कफ, मेद, विष, वातज कोढ़, व्रण, सूजन, खुजली और विसर्पको नाश करता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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