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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) शास्त्रमें इसकी खूब ही तारीफ़ लिखी है। आज़मानेसे हमने भी इसे अनेक अगरेजी दवाओंसे अच्छा पाया है। लेकिन आजकल यह तैल असली कम मिलता है, क्योंकि अव्वल तो इसकी बहुत-सी जड़ीबूटियाँ बड़ी मुश्किल और भारी खर्चसे मिलती हैं; दूसरे, इसके तैयार करने में भी बड़ी मिहनत करनी पड़ती है, इसी वजहसे कलकतिये कविराज इसे बहुत महँगा बेचते हैं। हमारे यहाँ यह तेल बड़ी सफाई और शास्त्रोक्त विधिसे तैयार किया जाता है। यही कारण है कि, अनेक देशी वैद्य लोग इसे हमारे यहाँसे ले जाकर अपने रोगियोंको देते और धन तथा यश कमाते हैं। यह तैल हमारा अनेक बारका आजमाया है । हजारों रोगी इससे आराम हुए हैं। हम विश्वास दिलाते हैं कि, इसकी लगातार मालिश करानेसे शरीरका दर्द, कमरका दर्द, पैरोंमें फूटनी होना, शरीरका दुबलापन या रूखापन, शरीरकी सूजन, अर्धाङ्ग वायु, लकवा मार जाना, शरीरका. हिलना, काँपना, मुखका खुला रह जाना या बन्द हो जाना, शरीर डण्डेके समान तिरछा हो जाना, अंगका सूनापन, झनझनाहट, चूतड़से टखने तकका दर्द आदि समस्त वायु-रोग निस्सन्देह आराम हो जाते हैं । यह तैल भीतरी नसोंको सुधारता, सुकड़ी नसोंको फैलाता और हड्डी तकको नर्म कर देता है; तब बादी या वायुके नाश करनेमें क्या सन्देह है ? गठिया और शरीरका दर्द आदि आराम करने में तो इसे नारायणका सुदर्शन चक्र ही समझिये । दाम आध-पावकी १ शीशीका ११॥) मात्र है। मस्तक-शूल-नाशक तेल । (सिरदर्द-नाशक अद्भुत तैल) इस तैलको स्नान करनेसे पहले रोज, सिरमें लगानेसे सिरके सारे रोग नाश हो जाते हैं। इसकी तरीकी तारीफ नहीं हो सकती। यह तैल बालोंको काले, रसीले और चिकने रखता है । आँख-नाकसे For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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