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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२६ चिकित्सा-चन्द्रोदय । दिलचस्प किस्से-कहानी सुनावे । रोगीसे बहुत देर तक बातें करनेसे उसमें कमजोरी आती है और कमजोरी बढ़नेसे रोग बढ़ता और मौत पास आती है। रोगीके साफ बिछौनोंपर उत्तमोत्तम सुगन्धित फूल डाले रखने चाहिएँ । उसे खुशबूदार फूलों की मालाएँ पहनानी चाहिएँ । उसके सामने मेज पर गुलदस्ते रखने चाहिएँ । अगर रोगी धनवान हो, तो उसे फूलोंकी शय्यापर सुलाना चाहिए। - रोगीक पीनेका पानी-वैद्यकी आज्ञानुसार-ौटा-छानकर, साफ सुराही में रखना चाहिये। उस सुराहीको रोज़ कपूरसे बसा देना चाहिये । पीनेके पानीपर कपड़ा ढका रखना चाहिये । रोगीके आराम होनेका इसपर बहुत-कुछ दारमदार है । सवेरेका औटाया पानी रातको और रातका औटाया सवेरे नहीं पिलाना चाहिए । जल हमेशा खुले मुँह-बिना ढक्कन दिये-ौटाना उचित है। रोगीके कमरेमें अधिक भीड़-भाड़ न होने देनी चाहिए । लोगोंके जमा होनेसे कमरेकी हवा गन्दी होती है, जिससे रोगीको नुकसान पहुँचता है। उसके कमरेमें धूल-धूआँ वगैरः न होने चाहिएँ । धूल और धूएँ से खाँसी रोग पैदा होता और बढ़ता है और क्षय-रोगीको खाँसी पहले ही होती है। रोगीके कमरे में बिजलीका पङ्खा न होना चाहिये। अगर जरूरत हो तो कपड़ेका पङ्खा लगवा लेना चाहिए-अथवा दूसरे भागमें लिखे हुए तरीकेसे हाथके पंखेकी हवा करनी चाहिए । बिजली या गैसकी रोशनी भी रोगीको हानिकारक होती है। मिट्टीका तेल या किरासिन तेल भी बुरा होता है । चिराग़ देशी ढङ्गका जलाना अच्छा होता है। अगर रोगी अमीर हो, तो कपूरकी बत्तियाँ या घीके दीपक जलाने चाहिए । ग़रीबको तिलीके तेलके चिराग़ जलाने चाहिये । मोमबत्तीकी रोशनी भी अच्छी होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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