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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षयरोगपर प्रश्नोत्तर। बढ़ जाते हैं। रोगीको वमन होती, जी मिचलाता और पतले दस्त लगते हैं। __प्र०-क्या क्षयरोगीका दिमाग भी खराब हो जाता है ? उ०-आप जानते होंगे, मनुष्य-शरीरमें खून चक्कर लगाया करता है। वह हृदयमें आकर शुद्ध होता है और शुद्ध होकर शरीरके सब अङ्गोंको पोषण करता है। चूँ कि क्षय-रोगमें फेंफड़े कफसे भर जाते हैं, इसलिये वह खूनको शुद्ध नहीं करते । अशुद्ध रक्त ही मस्तकमें जाता है, इसलिये मस्तकमें अनेक विकार हो जाते हैं। रोगीका सिर भारी रहता है । वह मनमानी बकता है। किसी बातपर कायम नहीं रहता, उसे नींद नहीं आती । रात-भर करवटें बदलता है। चैन नहीं पड़ता। करवट भी बदलना कठिन हो जाता है; क्योंकि ताक़त नहीं रहती। सीधा पड़ा रहता है। सीधे पड़े रहनेसे उसकी पीठ लग जाती है, अतः पीठमें घाव हो जाता है। बैठना चाहता है, पर बैठा नहीं रहा जाता, इसलिये फिर पड़ जाता है। मस्तिष्क-विकारोंके कारण रोगीको बड़ी तकलीफ और बेचैनी रहती है। ___ प्र०--कोई ऐसी तरकीब बताइये जिससे साधारण आदमी भी आसानीसे जान सके कि, रोगीको क्षय है या अन्य ज्वर ? उ०--साधारण ज्वरमें, अगर खाना खानेके बाद, ज्वर रोगीपर आक्रमण करता है, तो रोगीको मालूम हो जाता है कि, मुझे ज्वर चढ़ रहा है; पर यक्ष्मामें यह बात नहीं होती। क्षयवालेको भी भोजनके बाद ज्वर बढ़ता है, पर रोगीको पता नहीं लगता। साधारण ज्वरमें, अगर पसीना आता है, तो कमोबेश सारे शरीरमें आता है। पर क्षय-ज्वरमें, पसीना छातीपर जियादा आता है। यह फर्क है। साधारण ज्वरमें, पसीने आनेसे रोगीका बदन हल्का हो जाता For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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