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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१२ चिकित्सा-चन्द्रोदय। देखकर मनमें समझते हैं कि, रोगीको आराम है; लेकिन यह बात उल्टी है। क्षयमें पेशाब सफ़ेद होना मरण-चिह्न है। ___ प्र०-अच्छा, क्षय-रोगीकी जीभ कैसी होती है ? .. उ० - क्षय-रोगीकी जीभ शुरूमें सफ़ेद रहती है, लेकिन दिन बीतनेपर वह लाल-लाल दिखाई पड़ती है। ज्यों-ज्यों रोगीका मरणकाल निकट आता जाता है, उसकी जीभ अनेक तरहके रंगोंकी दिखाई देने लगती है। कभी किसी रंगकी होती है और कभी किसी रंग की। - प्र०-क्षय-रोगीके शरीरके किन-किन अंगोंमें वेदना होता है ? ___ उ०-क्षय-रोगीकी छातीमें भयङ्कर वेदना होती है । तीर-से छिदते हैं। उसकी पीठ और पसलियोंमें भी वेदना होती है। इसी तरह कभी कन्धे, कभी पीठ और कभी छाती या पसवाड़ोंमें पीड़ा होती है । अगर एक तरफके फेफड़ेमें रोग होता है, तो पीड़ा एक तरफ होती है । अगर दोनों तरफके फेफड़ों में रोग होता है, तो दोनों तरफ वेदना होती है । खाँसने, साँस लेने और दर्दकी जगहपर हाथ लगाने या दबानेसे बड़ी तकलीफ होती है। । प्र०--क्या क्षय-रोगीके शरीरकी तपत या गरमी कभी कम होती है ? उ०-यद्यपि क्षय-रोगीको पसीने दिन-रातमें कई बार और बहुत आते हैं-रातके समय तो खास तौरसे बहुत पसीने आते हैं, पर इन पसीनोंसे उसकी तपत या शरीरकी गरमी कम नहीं होती। उसका बदन तो पसीनों-पर-पसीने आनेपर भी तपता ही रहता है। अगर ईश्वरकी कृपासे वह आराम ही हो जाता है, तब उसकी तपत कम होती है। प्र०-क्षय-रोगीके मल-त्याग और भूखकी क्या हालत होती है ? उ०—इस रोगीको बहुधा भूख नहीं लगती, क्योंकि आमाशय अपना काम (Function ) बन्द कर देता है। लिवर और तिल्ली For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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