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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । अफीम, गाँजा, चन्डू और शराब वगैरः नशीली चीज़ोंको जियादा सेवन करते हैं, जिन्हें घनी बस्तीमें रहनेकी वजहसे साफ हवा नहीं मिलती, जो लोग हस्त-मैथुन-हैन्ड-प्रैक्टिस या मास्टर-बेशन प्रभृति कानून-कुदरतके खिलाफ काम करते हैं, उन सब लोगोंके शरीर क्षयके कीड़ोंके बसनेके लिए उपयुक्त स्थान होते हैं । प्र०-कुछ और भी कारण बताओ । ___ उ०-छातीमें चोट लग जाने, किसी बुरी या बदबूदार चीजके फेंफड़ोंमें यकायक घुस जाने, गरम शरीरमें यकायक सर्दी लग जाने, गरम जगहसे यकायक सर्द जगहमें चले जाने, ठण्डी हवा या लूओंमें शरीर खुला रखने, किसी वजहसे फेंफड़ों द्वारा खून जाने, ऋतुओंमें उल्ट-फेर होने, किसी तेज़ चीज़से छातीके फटने आदि अनेकों कारणोंसे क्षय-रोग होता है। लेकिन आजकल ज़ियादातर यह रोग रातमें जागने, वेश्याओंमें रात-भर घूमने, अति मैथुन करने, रात-दिन घाटेनफेकी चिन्ता करने, बाल-बच्चोंके गुजारेकी चिन्तामें चूर रहने आदि कारणोंसे होता है। प्र०-यह रोग किनको अधिक होता है ? उ०-यह रोग मर्दोकी अपेक्षा औरतोंको एवं बूढ़े और बच्चोंकी अपेक्षा जवानोंको ज़ियादा होता है। कोई-कोई कहते हैं कि, औरतोंकी अपेक्षा मर्दोको यह ज़ियादा होता है। बहुत करके, अठारह सालकी उम्रसे तीस साल तककी उम्रवालोंको यह अपना शिकार बनाता है। काश्मीर प्रभृति उत्तरीय देशों में यह रोग गरमी और जाड़ेमें होता है । पूर्वीय देशोंमें, खरीफकी ऋतुमें होता है । ऐसे लोग सुचिकित्सककी चिकित्सासे आराम हो सकते हैं, पर जिन्हें यह रोग गर्मियोंमें होता है, उनका आराम होना कठिन ही नहीं, असम्भव है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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