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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir wwwwwwww ५८४ -- चिकित्सा-चन्द्रोदय । गला बैठना, अरुचि और ज्वर ये 2 लक्षण हों अथवा श्वास, खाँसी और खून थूकना-तीन लक्षण हों तो रोगीको असाध्य समझो । ___ अगर रोगीमें जुकाम प्रभृति लक्षण कम भी हों, पर रोगी रोग और दवाके बलको न सह सकता हो, तो वैद्य उसको असाध्य समझकर, उसका इलाज न करे, यह वाग्भट्टका मत है। नोट-अगर रोगीमें जुक्काम आदि सब लक्षण हों, पर वह रोग और दवाके बलको सह सकता हो, तो पाराम हो जायगा । भावमिश्रजी कहते हैं, यशकामी वैद्य ग्यारह या छै अथवा ज्वर, खाँसी और खून थूकना इन तीन लक्षणोंवालोंका इलाज नहीं करते। जो क्षय-रोगी खूब जियादा खाने-पीनेपर भी सूखता जाता है, वह असाध्य है-आराम न होगा। जिस रोगीको अतिसार हो-पतले या आम मरोड़ी वगैरःके दस्त लगते हों, उसका इलाज वैद्यको न करना चाहिये, क्योंकि वह असाध्य है । कहा है मलायत्तं बलं पुंसां शुक्रायत्तं चजीवितम् । तस्माद्यत्नेन संरक्षेद्यचिमणो मल रेतसी ॥ मनुष्योंका बल मलके अधीन है और जीवन वीर्यके अधीन है, अतः क्षय रोगीके मल और वीर्यकी रक्षा यत्नसे-खूब होशियारीसे करनी चाहिये। क्षय-रोगका अरिष्ट । जिस क्षयरोगीकी आँखें सफ़ेद हो गई हों, अन्नमें अरुचि हो-- खानेको मन न चाहता हो और उर्द्ध श्वास चलता हो, उसे अरिष्ट है, वह मर जायगा। जिस रोगीका बहुत-सा वीर्य कष्टके साथ गिरता हो, वह क्षयरोगी मर जायगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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