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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा। ५८३ स्थान-भेदसे दोषोंके लक्षण । वाग्भट्ट कहते हैं, अगर दोष ऊपर रहता है, तो जुकाम, श्वास, खाँसी, कन्धों और सिरमें दर्द, स्वरपीड़ा और अरुचि-ये उपद्रव होते हैं। अगर दोष नीचेके अङ्गोंमें होता है, तो अतिसार और शरीर सूखना-ये उपद्रव होते हैं। अगर दोष कोठेमें रहता है, तो कय या वमन होती हैं । अगर दोष तिरछा होता है, तो पसलियोंमें दर्द होता है। अगर दोष सन्धियों या जोड़ोंमें होता है, तो ज्वर चढ़ता है। इस तरह क्षय रोगमें ११ उपद्रव होते हैं । साध्यासाध्यत्व । साध्य लक्षण । क्षय-रोग साधारणतः कष्टसाध्य है, बड़ी दिक्कतोंसे आराम होता है; पर अगर रोगीके. बल और मांस क्षीण न हुए हों, तो चाहे यक्ष्माके ग्यारहों लक्षण क्यों न प्रकट हो जायँ, वह आराम हो सकता है । खुलासा यह है, कि यक्ष्माके समस्त लक्षण प्रकाशित हो जानेपर भी रोगी आराम हो सकता है, बशर्ते कि, उसके बल और मांस क्षीण न हुए हों। "बङ्गसेन में लिखा है, जिनकी इन्द्रियाँ वशमें हैं, जिनकी अग्निदीप्त है और जिनका शरीर दुबला नहीं हुआ है, उन यक्ष्मावालोंका इलाज करना चाहिये । वे आराम हो जायेंगे । असाध्य लक्षण । अगर रोगीके बल और मांस क्षीण हो गये हों, पर यक्ष्माके ग्यारह रूप प्रकट न हुए हों; खाँसी, अतिसार, पसलीका दर्द, स्वर-भंग For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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