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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ चिकित्सा-चन्द्रोदय। बढ़नेको असल मसाला-रस नहीं मिलता। जब रस नहीं, तब. खून कहाँ ? और जब खून नहीं, तब मांसकी तो बात ही क्या है ? क्षयरोगी केवल मल या विष्टाके सहारे जीता है । मल टूटा और जीवन नाश हुआ। यों तो सभी बलका सहारा मल और जीवनका अवलम्ब वीर्य हैं; पर क्षयरोगीको तो केवल मलका ही आसरा है, क्योंकि उसमें वीर्यकी तो कमी रहती है। एक बात और भी है, जिस तरह कारण-भूत या सब धातुओंको पैदा करनेवाले "रस” के क्षय होनेसे-कमी होने या नाश होनेसेकार्यभूत या रससे पैदा हुई धातुओं-खून वगैरः--का क्रमसे क्षय होता है; ठीक उसी तरहपर उल्टे क्रमसे, कार्यभूत शुक्रके क्षयसे कारणरूप मजा आदि धातुओंका क्षय होता है । खुलासा यों समझिये, कि जिस तरह सब धातुओंके पैदा करनेवाले "रस" के नाश होनेसे रक्त, मांस और मेद आदि धातुओंका नाश होता है; उसी तरह रससे बनी हुई रक्त आदि धातुओंमेंसे वीर्यका नाश होनेसे मजा, अस्थि, मेद और मांस आदि धातुओं का भी नाश होता है, यानी जिस तरह रसकी घटतीसे खून आदिकी घटती होती है, उसी तरह शुक्र-वीर्यकी कमीसे उसके पैदा करनेवाली मज्जा आदि धातुएँ भी घट जाती हैंउस हालतमें, वेगोंके रोकने आदि कारणोंसे, वातादि दोष कुपित होते हैं और रस बहानेवाली नाड़ियोंकी राह बन्द कर देते हैं। इसलिये खून बनानेवाली मैशीनमें खून बननेका मसाला “रस" नहीं पहुँचता। रसके न पहुँचनेसे खून नहीं बनता और खून न बननेसे मांस वगैरः नहीं बनते । इस दशामें--उल्टी हालतमें--पहले मैथुनसे वीर्य कम होता है। वीर्यके कम होनेसे वायु कुपित होता है। वायु कुपित होकर मज्जादि धातुओंको शोख लेता है। धातुओंके सूखनेसे मनुष्य सूख जाता है। हम समझते हैं, धातुओंके सीधी और उल्टी राहते क्षय होनेकी बात पाठक अब समझ जायँगे । और भी साफ यों For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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