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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा। ५७७ "रस" है । रससे ही खून आदि धातुएँ बनती हैं। जब रस ही न होगा, रक्त कहाँसे होगा ? रक्त न होगा, तो मांस भी न होगा। जिन नालियोंमें होकर “रस" रक्त बनानेकी मैशीनमें पहुँचता और वहाँ जाकर खून हो जाता है, उन नालियोंकी राहें जब दोषोंके कुपित होनेसे बन्द हो जाती हैं, तब "रस" रक्त बननेकी मशीनमें पहुँच ही कैसे सकता है ? वह वहाँका वहीं यानी अपने स्थान-हृदय में जलकर, खाँसीके साथ मुँहसे निकल जाता है। रस नहीं रहता और इसीसे खून तैयार करनेवाली मशीनमें नहीं पहुँचता, इसका नतीजा यह होता है, कि खून दिन-पर-दिन कम होता जाता है और खूनके कम होनेसे मांस आदि भी कम होने लगते हैं । “चरक" में लिखा है:- रसःस्रोतःसु रुद्धषु, स्वस्थानस्थो विदह्यते । सऊर्ध्वं कासवेगेन, बहुरूपः प्रवर्त्तते ॥ स्रोतों या छेदों अथवा नाड़ियोंके रुक जानेपर, हृदयमें रहनेवाला रस विदग्ध हो जाता है, जल जाता है। इसके बाद वह, ऊपरकी ओरसे, खाँसीके वेगके साथ, मुंह द्वारा, अनेक तरहका होकर बाहर निकल जाता है। दूसरे शब्दोंमें यों कह सकते हैं, कि रस ही सब धातुओंकी सृष्टि करनेवाला है। जब उस रसकी ही चाल रुक जाती है, उसीकी राहें बन्द हो जाती हैं, तब रक्त आदि धातुओंका पोषण कैसे हो सकता है ? वाग्भट्ट महाराज इसी बातको और ढङ्गसे कहते हैं। उनका कहना है, जिस तरह तन्दुरुस्त आदमियोंके खाये-प्रिये पदार्थ शरीरकी अमि और धातुओंकी गरमीसे फ्कते हैं, उस तरह क्षयरोगीके खाये-पिये पदार्थ शरीर और धातुओंकी गरमीसे नहीं पकते। उसके खाये-पिये पदार्थ कोठोंमें पंचते हैं और पचकर उनका मल बन जाता है, रस नहीं बनता। चूँकि रंस नहीं बनता, मल बनता है, इसलिये रक्त आदि धातुओं का पोषण नहीं होता-उनके For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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