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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । कमर, कूल्हों और पेड़ में भारीपन होता है। बाज़ी स्त्रियोंका मिजाज चिड़चिड़ा हो जाता है । जो अमीरीकी वजहसे मोटी हो जाती हैं, जिनको क़ब्ज़ और अजीर्ण रहता है, जो जोश दिलानेवाली पुस्तकेंलण्डन-रहस्य या छबीली भटियारी प्रभृति पढ़ती हैं या ऐसी बातें सुनती और करती हैं, उनके पेड़ , कमर और कूल्होंमें बड़ी वेदना होती और उनके हाथ-पैर टूटा करते हैं। ___ इस गरम देशकी स्त्रियोंको बारह या चौदह सालकी उम्रमें रजोधर्म होने लगता है। किसी-किसीको बारह वर्षके पहले ही होने लगता है। यूरोप आदि शीतप्रधान देशोंकी स्त्रियोंको चौदह-पन्द्रह सालकी उम्र में रजोदर्शन होता है। जिन घरोंकी लड़कियाँ खाती तो बढ़िया-बढ़िया माल हैं और काम करती हैं कम तथा जो पतिसंग या विवाह-शादीकी बातें बहुत करती रहती हैं, उन्हें रजोदर्शन जल्दी होता है। गरीब घरोंकी कमजोर और रोगीली लड़कियोंको रजोदर्शन देर में होता है। __बारह या चौदह सालकी उम्रसे रजोधर्म होने लगता और ४५ या ५० सालकी उम्र तक होता रहता है । जब गर्भ रह जाता है, तब रजोधर्म नहीं होता। जब तक स्त्री गर्भवती रहती है, रजोधर्म बन्द रहता है । जो स्त्रियाँ अपने बच्चोंको दूध पिलाती हैं, वे बच्चा जननेके कई महीनों तक भी रजस्वला नहीं होती । ४५ और ४६ सालके दान रजोधर्म होना स्वभावसे ही बन्द हो जाता है । जब तक स्त्री रजस्वला होती रहती है, उसे गर्भ रह सकता है । कभी-कभी रजोदर्शन होनेके पहले और रजोदर्शन बन्द होनेके बाद भी गर्भ रह जाता है। आर्तव निकलनेके दिनोंमें स्त्रीकी बाक़ी जननेन्द्रियोंमें भी कुछ फेर-फार होता रहता है। डिम्ब-प्रन्थि, डिम्ब-प्रनालियाँ और योनि अधिक रक्तमय हो जाती हैं और उनका रङ्ग गहरा हो जाता है। गर्भाशय भी कुछ बढ़ जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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