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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नर-नारीकी जननेन्द्रियोंका वर्णन । शिश्न या लिंग। शिश्न या लिङ्ग मर्दके शरीरका एक अङ्ग है । इसीमें होकर मूत्र मूत्राशयसे वाहर आता है और इसीसे पुरुष स्त्रीसे मैथुन करता है। जब लिङ्ग ढीला, शिथिल या सोया रहता है, तब वह तीन या चार इञ्च लम्बा होता है । जब पुरुष स्त्रीको देखता, छूता या आलिंगन करता है, तब उसे हर्ष होता है । उस समय उसकी लम्बाई बढ़ जाती है और वह पहलेसे खूब कड़ा भी हो जाता है। अगर इस समय वह सख्त न हो जाय, तो योनिके भीतर जा ही न सके । जिन पुरुषोंका लिङ्ग हस्तमैथुन आदि कुकर्मोंसे ढीला हो जाता है, वह मैथुन कर नहीं सकते । मैथुनके लिये लिङ्गके सख्त होने की जरूरत है। शिश्न-मणि । लिङ्गके अगले भागको मणि या सुपारी अथवा शिश्नमुण्डलिङ्गका सिर कहते हैं । इसमें एक छेद होता है । उस छेदमें होकर ही मूत्र और वीर्य बाहर निकलते हैं । इस सुपारीके ऊपर चमड़ी होती है, जिसे सुपारीका घू घट भी कहते हैं । यह हटानेसे ऊपरको हट जाती और फिर खींचनेसे सुपारीको ढक लेती है। जब यह चमड़ी या चूंघटकी खाल तंग होती है, तब हटानेसे नहीं हटती; यानी घूघट बड़ी मुश्किलसे खुलती है । मैथुनके समय इसके हट जानेकी ज़रूरत रहती है। अगर इसके बिना हटे मैथुन किया जाता है, तो पुरुषको बड़ी तकलीफ होती है और मैथुन-कर्म भी अच्छी तरह नहीं होता। इसीसे बहुतसे आदमी तङ्ग आकर, इसे मुसलमानोंकी तरह कटवा डालते हैं। कटवा देनेसे कोई हानि नहीं होती। मुसलमानोंमें तो इसका दस्तूर ही हो गया है । बाज-बाज़ औकात छोटे-छोटे बालकोंकी यह चमड़ी अगर तङ्ग होती है, तो उन्हें बड़ा कष्ट होता है । जब उनकी पालने For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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