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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "४६० चिकित्सा-चन्द्रोदय ।। (१८) अगर स्त्री गरम मिज़ाजवाली हो और गर्भ गिराना हो, तो ३३।। माशे खतमी सिलपर पानीके साथ पीसकर, आध सेर जलमें मिला दो और उसे पिला दो। इस दवासे बालक फिसलकर निकल पड़ेगा। (१६) सत्तर माशे तिल कूटकर २४ घण्टों तक पानीमें भिगो रखो । सवेरे ही कपड़ेमें छानकर उस पानीको पीलो । इस नुसनेसे बालक फिसलकर निकल आवेगा। (२०) जङ्गली पोदीना, खगाली लकड़ी, तुर्की अगर, कड़वा कूट, तज, अजवायन, पोदीना, दोनों तरहके मरुवे, नाकरून घासके बीज, मेथी, पहाड़ी गन्दना, काली झाँप, ऊदबिलसाँ और तगरसबको बराबर-बराबर लेकर एक बड़े घड़ेमें औटाकर काढ़ा कर लो। फिर उस काढ़ेको एक टब या गहरे और चौड़े बर्तन में भर दो और उस काढ़ेमें स्त्रीको बिठा दो; गर्भ गिर जायगा। जब गर्भ गिर जाय, गूगल, जुफा, हुमुल, सातरा, अलेकुल-बतम और राई--इनमेंसे जो-जो चीज़ मिलें, उनको आगपर डाल-डालकर गर्भाशयको धूनी दो । इस उपायसे रज गिरता रहेगा-गाढ़ा न होने पावेगा। (२१) इन्द्रायणका गूदा, तुतलीके पत्ते और कूट--इनको सातसात माशे लेकर, महीन पीस लो और बैल के पित्तमें मिलाकर नाभिसे पेड़ और योनि तक इसका लेप करदो, गर्भ गिर जायगा। (२२) इन्द्रायणके स्वरसमें रूईका फाहा भिगोकर योनिमें रखनेसे गर्भ गिर जाता है। ___ (२३) कड़वे तेल में साबुन मिलाकर, उसमें रूईका फाहा भिगोकर, गर्भाशयके मुंह में रखने से गर्भ गिर जाता है । ___ (२४) कड़वी तोरई बीजों समेत पानीके साथ सिलपर पीसकर, नाभिसे योनि तक लेप करने और इसीमें एक रूईका फाहा भिगोकर गर्भाशय में रखनेसे गर्भ गिर जाता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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