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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra __www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mommom विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। २१ अगर नेत्र बन्द हो गये हों, तो दारुहल्दी, त्रिकुटा, हल्दी, कनेर, कंजा, नीम और तुलसीको . बकरीके मूत्रमें पीसकर, नेत्रों में आँजना चाहिये। काली सेम, तुलसीके पत्ते, इन्द्रायणकी जड़, पुनर्नवा, काकमाची और सिरसके फूल,--इन सबको पीसकर, इनका लेप करने, नस्य देने, अंजन करने और पीनेसे उस प्राणीको लाभ होता है, जो उद्वधन विष और जलके द्वारा मुर्देके जैसा हो रहा हो। . (४) सब विष एक ही स्वभावके नहीं होते; कोई वातिक, कोई पैत्तिक और कोई श्लेष्मिक होता है। भिन्न-भिन्न प्रकारके विषोंकी चिकित्सा भी अलग-अलग होती है, क्योंकि उनके काम भी तो अलग-अलग ही होते हैं। वातिक विष होनेसे हृदयमें पीड़ा, उर्ध्ववात, स्तम्भ, शिरायाम--. मस्तक खींचना, हड्डियोंमें वेदना आदि उपद्रव होते हैं और शरीर काला हो जाता है। इस दशामें, (१) खाँडका व्रण लेप, (२) तेलकी मालिश, (३) नाड़ी स्वेद, (४) पुलक आदि योगसे स्वेद. और वृहण विधि हितकारी है। ... _पैत्तिक विष होनेसे संज्ञानाश--होश न रहना, गरम श्वास निकलना, हृदयमें जलन, मैं हमें कड़वापन, काटी या डसी हुई जगहका फटना और सूजन तथा लाल या पीला रङ्ग हो जाना -ये उपद्रव होते हैं। इस अवस्थामें, शीतल लेप और शीतल सेचन आदि उपचारोंसे काम लेना हित है। ___ श्लेष्मिक विष होनेसे वमन, अरुचि, जी मिचलाना, मुँहसे पानी बहना, उत्क्लेश, भारीपन और सर्दी लगना तथा मुंहका जायका मीठा होना--ये लक्षण होते हैं । इस अवस्थामें, लेखन, छेदन, स्वेदन और वमन-ये चार उपाय हितकारी हैं । . नोट--(१) दर्वीकर या काले फनदार साँपोंके काटनेसे वातका प्रकोप होता है; मण्डली सर्पके काटनेसे पित्तका और राजिलके काटनेसे कफका प्रकोप होता For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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