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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAA ४७२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । (१) गर्भवतीका मोटा होना। (२) सर्द हवा या सर्दीसे गर्भाशयके मुखका सुकड़ जाना । (३) बालकके ऊपरकी झिल्लीका बहुतही मोटा होना। (४) प्रकृति और हवाफी गरमी । __ पहले कारणका इलाज । ___(१) अगर स्त्री मोटी होता है, तो उसका गर्भाशय भी मोटा होता है । मुटाईकी वजहसे गर्भाशयका मुंह तंग हो जाता है; यानी जिस सूराख या राहमें होकर बालक आता है, उस सूराखकी चौड़ाई काफी नहीं होती । अगर बालक दुबला-पतला होता है, तब तो उतनी कठिनाई नहीं होती । अगर कहीं मोटा होता है, तब तो महा विपद्का सामना होता है । ऐसे मौकोंके लिये हकीमोंने नीचे लिखे उपाय लिखे हैं:-- (क) बनफशेका तेल, जम्बकका तेल, जैतूनका तेल, मुर्गे और बतनकी चर्बी एवं गायकी पिंडलीकी चर्बी,-इनको बच्चा जननेवाली स्त्रीके पेट और पीठपर मलो । __(ख) बाबूना, सोया और दोनों मरुवोंको पानीमें श्रौटाकर, उसी पानीमें बच्चा जननेवालीको बिटाओ । यह पानी स्त्रीकी हूँ डी-सू डी या नाभि तक रहना चाहिये । इसलिये ढेर-सा काढ़ा औटाकर एक टबमें भर देना चाहिये और उसीमें स्त्रीको बिठा देना चाहिये। (ग) जंगली पोदीना और हंसराज इन दोनोंका काढ़ा बनाकर मिश्री मिला दो और स्त्रीको पिलादो । (घ) काला दाना, जुन्देवेदस्तर और नकछिकनी-इनको पीसछानकर छींक आनेके लिये स्त्रीको सँघाओ। जब छींक आने लगें, तब स्त्रीके नाक और मुंहको बन्द कर दो, ताकि भीतरकी ओर ज़ोर पड़े और बालक सहजमें निकल आवे । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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