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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसव-विलम्ब-चिकित्सा। ४७१ लिखना व्यर्थ समझते हैं । जिन्हें ये बातें जाननी हों, "स्वास्थ्यरक्षा" देखें। ००. ००००००००० ००.०००.०० 000000000000० 0000.०००००००००००००००००००००० .*०००nas .. .90sa30003 00000 oce 200300 । प्रसव-विलम्ब-चिकित्सा । ४ -- - - ----- --- XXXX भिणी जब बच्चा जन लेती है, तब उसका नया जन्म गू होता है । जिस तरह पेटमें बच्चेके मर जाने पर स्त्रीकी HAKRA जानको खतरा होता है; उसी तरह अनेक कारणोंसे जीते हुए बच्चे के जल्दी न निकलने अथवा ओलनाल, जेर या झिल्लीके पेटमें कुछ देर रुके रहनेसे स्त्रीकी मौतका सामान हो जाता है। इसलिये बच्चा जननेवालीकी जीवन-रक्षा और सुखके लिये चन्द ऐसे उपाय लिखते हैं, जिनसे बालक आसानीसे योनिके बाहर आ जाता है । यद्यपि रुके हुए गर्भ और जेर-प्रभृतिको सहजमें निकाल देने वाले मन्त्र-तन्त्र और योग वैद्यकमें बहुत-से लिखे हैं; पर बालकके रुक जानेके निदान-कारण प्रभृतिका हमारे यहाँ बहुत ही संक्षिप्त जिक्र है। आयुर्वेद की अपेक्षा हिकमतमें इस विषयपर खूब प्रकाश डाला गया है । अतः हम तिब्बे अकबरी, मीजान तिब्ब और इलाजुलगुर्बा प्रभृतिसे दो-चार उपयोगी बातें, पाठकोंके लाभार्थ, नीचे लिखते हैं:हिकमतसे निदान-कारण और चिकित्सा । मुख्य चार कारण । बालकके होनेमें देर लगने या कठिनाई होनेके मुख्य चार कारण हैं: For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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