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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । लुगदी बना लो। फिर घी ६४ तोले और शतावरका रस और दूध दोनों मिला. कर २५६ तोले लो और यथाविधि घो पका लो। हमारे नुसत्र में दूध नहीं है, बङ्गसेनमें भी घीसे चौगुना शतावरका रस और दूध लेना लिखा है। अब यह बात वैद्योंकी इच्छापर निर्भर है, चाहे जिस तरह इस घीको बनावें । हमने जिस तरह परीक्षा की, उस तरह लिख दिया । दूसरा फलघृत। दोनों तरहके पियाबाँसा, त्रिफला, गिलोय, पुनर्नवा, श्योनाक, हल्दी, दारुहल्दी, रास्ना, मेदा, शतावर-इन ग्यारह दवाओंको 'पीस-कूटकर, सिलपर रख, जलके साथ फिर पीसकर लुगदी या कल्क बना लो। इन सब दवाओंको दो-दो तोले लो; घी ६४ तोले लो और गायका दूध २५६ तोले लो। सबको मिलाकर, कढ़ाहीमें रख, चूल्हेपर चढ़ा, मन्दाग्निसे घी पका लो। रोग-नाश--इस घीके पीनेसे योनि-शूल, पीड़िता, चलिता, निःसृता और विवृता आदि योनि-रोग आराम होते और स्त्रीमें गर्भधारणशक्ति पैदा होती है। यह घृत योनि-दोष नाश करके गर्भ रखने में उत्तम है। परीक्षित है। नोट--पुनर्नवा साद, लाल और नीला इस तरह कई प्रकारका होता है। इसका विषखपरा और साँठ या साँठी भी कहते हैं। लालको लाल पुनर्नवा या लाल विषखपरा कहते हैं। नीलेको नीला पुनर्नवा या नीली साँठ कहते हैं। बंगलामें श्वेत गांदावन्ने, रक्तगांदावन्ने और नील गांदावन्ने कहते हैं। कोई. कोई बंगाली इसे श्वेत पुण्या भी कहते हैं । सफ़ेद पुनर्नवा गरम और कड़वा होता है । यह कफ, खाँसी, विष, हृदयरोग, खूनविकार, पीलिया, सूजन और वात-वेदना-नाशक है । मात्रा २ माशेकी है । दोनों पियाबाँसोंसे मतलब दोनों तरहके सहचरों या कटसरैयासे है। यह सहचर या कटसरैया दो तरहकी होती हैं:--(१) कटसरैया या पियाबाँसा, (२) पीली कटसरैया । इस विषयमें हम विस्तारसे अन्यत्र लिख पाये हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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