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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--बाँझका इलाज। ४४७ योगी है । इसके सेवन करनेसे बाँझ स्त्री भी वेदवेदाङ्गके जानने वाला,. रूपवान, बलवान, अजर और शतायु पुत्र जनती है। नोट-यद्यपि इस नुसत में “लक्ष्मणा” की जड़का नाम नहीं आया है, तो भी सुवैद्य इसमें उसे डालते हैं । लक्ष्मणाके मिलाने से निश्चय ही गर्भ रहता और पुत्र होता है। वृहत् फलघृत। मँजीठ, मुलेठी, कूट, त्रिफला, खाँड़, खिरैटी, मेदा, क्षीर-काकोली, काकोली, असगन्धकी जड़, अजमोद, हल्दी, दारुहल्दी, हींग, कुटकी नीलकमल, कमोदिनी -कुमुदफूल, दाख, दोनों काकोली, लाल चन्दन और सफेद चन्दन--इन २१ दवाओंको पहले कूट-पीसकर महीन कर लो। फिर सिलपर रखकर, पानीके साथ भाँगकी तरह पीसकर लुगदी या कल्क बना लो। घी चार सेर और शतावरका रस सोलह सेर तैयार रखो। शेषमें, ऊपरकी लुगदी, घी और शतावरके रसको कलईदार कढ़ाहीमें चढ़ाकर मन्दाग्निसे पकाओ । जब रस जलकर घी-मात्र रह जाय, उतार लो और छानकर साफ़ बासनमें रख दो। रोगनाश--इस घीके मात्राके साथ पीनेसे बन्ध्यादोष, मृतवत्सादोष, योनिदोष और योनिस्राव आदि रोग आराम होते हैं। __जिस स्त्रीको गर्भ नहीं रहता, जिसके मरी सन्तान होती है, जिसके अल्पायु सन्तान होती है, जिसकी सन्तान होकर मर जाती है, जिसके कन्या-ही-कन्या होती हैं, उसके लिये यह “फलघृत” उत्तम है। अगर पुरुष इस घीको पीता है, तो स्त्रियोंकी खूब तृप्ति करता है। इस घृतको अश्विनीकुमारों ने निकाला था। नोट--यद्यपि इसमें "लक्ष्मणा" का नाम नहीं आया है, तथापि वैद्यलोग इसमें उसे डालते हैं। अगर मिले तो अवश्य डालनी चाहिये। "चक्रदत्त" में लिखा है, प्रत्येक दवाको एक-एक तोले लेकर और पीसकर For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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