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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । लक्षण(१) रजोधर्म देरमें हो। (२) खून लाल, पतला और थोड़ा आवे और जल्दी बन्द न हो। ३) अगर सर्दी सारे शरीरमें फैल जाय, तो रङ्ग सफ़ेद और छूनेमें शीतल हो । इसके सिवा और भी सर्दीक चिह्न हों। चिकित्सा-- . अगर साधारण सर्दीका दोष हो, तो गरम दवाओंसे ठीक करो। अगर कफका मवाद हो, तो पहले उसे यारजात और हुकनोंसे निकाल डालो। इसके बाद और उपाय करोः-- (क) दीवालमुश्क खिलाओ। (ख) केशर, बालछड़, अकलील-उल-मलिक, तेजपात, पहाड़ी किर्बिया, बतखकी चरबी, मुर्गीकी चरबी, अण्डेकी जर्दी और नारदैनका तेल--इन सबको पीस-कूटकर मिला दो। पीछे एक उनका टुकड़ा तरकर योनिमें रख दो। (ग) रजोधर्मसे निपटकर लाल हरताल, दूध, सरू का फल, सलारस, गन्दाबिरौजा और हब्बुल गारकी धूनी योनिमें दो । इन दवाओंको एक मिट्टीके बर्तन में रखकर, ऊपरसे जलते कोयले भर दो। इस बर्तनपर, बीचमें छेद की हुई थाली रख दो। थालीके छेदके सामने, पर थालीसे अलग, स्त्री अपनी योनिको रखे, ताकि धूआँ भीतर जाय । (घ) योनिको इन्द्रायणके काढ़ेसे धोना लाभदायक है। गर्भ-स्थानपर वारे लगाना भी उत्तम है। (ङ) भोजन-उत्तम कलिया, गरम मसाले डाला हुआ तवेपर भूना पक्षियोंका मांस--दालचीनी या उटंगनके बीज महीन पीसकर बुरकी हुई मुर्गीके अधभुने अण्डेकी जर्दी,--ये सब ऐसी मरीजाको मुफीद हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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