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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-नष्टार्तव । ३६१ (२) शरीरको दुबला करो। (३) मासिक धर्मके समय पाँवकी रगकी फस्द खोलो। (४) पेशाब लानेवाली दवाएँ और शबंत दो। (५) खानेसे पहले मिहनत कराश्रो। (६) बिना कुछ खाये स्नान करायो । (७) इतरीफज, सगीर, रूमी सैौफ और गुलकन्द मुफीद हैं। (८) कफनाशक जुलाब दो। (१) एक माशे चन्दरस, दो तोले सिकंजबीन और पानीको साथ मिलाकर पिलायो । भोजनमें सिरका, मसूर और जौकी रोटी खिलाओ। बबूलकी छायामें बैठायो । राँगेकी अँगूठी पहनानो। मोटे कपड़े पहनाओ। ज़मीनपर सुलाभो । सर्दीमें कुछ देर नङ्गो रखो। कम सोने दो। कुछ चिन्ता लगायो । इसमेंसे प्रत्येक उपाय मोटे शरीरको दुबला करनेवाला है । परीक्षित उपाय हैं। नोट-अगर गरमी हो, तो गरम चीज़ काममें न लामो । आठवाँ कारण । (८) गर्भाशय किसी तरफ़को फिर गया हो और इससे मासिक धर्म न होता हो, तो “बन्ध्या चिकित्सा में लिखा हुआ उचित उपाय करो। अन्य ग्रन्थोंसे कारण और पहचान । (१) अगर गर्भाशयमें गरमीसे खराबी होगी, तो हैजका खून या मासिक रक्त काला और गाढ़ा होगा और उसमें गरमी भी होगी। (२) अगर शीतकी वजहसे खराबी होगी, तो हैज़का खून या आर्तव देरसे बिना जलनके निकलेगा। (३) अगर खुश्कीसे रोग होगा; तो पेशाबकी जगह--योनि सूखी रहेगी और हैज़ कम होगा; यानी मासिक-रक्त कम गिरेगा। (४) अगर तरीसे रोग होगा, तो रहम या गर्भाशयसे तरी निकला करेगी। ऐसी स्त्रीको तीन महीनेसे जियादा गर्भ न रहेगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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