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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । या वायुसे सूख गया हो और इस तरह कमजोर हो गया हो, वह भी "दूषी विष" कहलावेगा। इसी तरह जो विष स्वभावसे ही--अपने-आप ही-कमजोर हो, उसमें विषके पूरे गुण न हों, उसे भी “दूषी विष" ही कहेंगे । मतलब यह कि, स्थावर और जंगम विष पुरानेपन प्रभृति कारणोंसे 'दूषी विष" कहलाते हैं । भावप्रकाशमें लिखा है:-- स्थावरं जंगमं च विषमेव जीर्णत्व मादिभिः कारणैर्दुषीविषसंज्ञां लभते । स्थावर और जंगम विष--जीर्णता आदि कारणोंसे “दूषी विष" कहे जाते हैं। दूषी विष क्या मृत्युकारक नहीं होता ? . दूषी विष कमजोर होता है, इसलिये मृत्यु नहीं कर सकता, पर कफसे ढककर बरसों शरीर में रहा आता है । सुश्रुतमें लिखा है: वीर्यल्प भावान निपातयेत्तत कफावृतं वर्षगणानुवन्धि । . दूषी विष वीर्य या बल कम होनेकी वजहसे प्राणीको मारता नहीं, पर कफसे ढका रहकर, बरसों शरीरमें रहा आता है। दृषी विषकी निरुक्ति। सुश्रुतमें लिखा है: दृषितं देशकालान्न दिवास्वम रभीक्ष्णशः । यस्मादुपयते धातून्तस्मादृषी विस्मृतम् ।। यह हीनवीर्य विष अगर शरीरमें रह जाता है, तो देश-काल और खाने-पीनेकी गड़बड़ी तथा दिनके अधिक सोने वगैरः कारणोंसे दूषित होकर धातुओंको दूषित करता है, इसीसे इसे "दूषी विष" कहते हैं। दूषी विष क्या करता है ? - दूषी विष हीन-वीर्य-कमजोर होनेकी वजहसे प्राणीको मारता तो नहीं है, लेकिन बरसों तक शरीरमें रहा आता है । क्यों रहा आता For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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