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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . a 603800 0... . .... 00.00000000000 . .. . . .. . . . . ४ योनि-संकोचन-योग । ... (भग तङ्ग करनेवाले नुसख्ने । ) . मैनफल, मुलेठी और कपूर-तीनोंको बराबर-बराबर लेकर महीन पीस-छान लो। फिर इस चूर्णको तंजेब या महीन मलमलके कपड़े में रखकर स्त्रीकी भगमें रखाओ। उम्मीद है, कि कई दिनोंमें, स्त्रीकी ढीली-ढीली और फैली हुई भग खूब सुकड़कर नर्म हो जायगी। परीक्षित है। (२) कौंचकी जड़का काढ़ा बनाकर, उससे कितने ही दिनों तक योनि धोनेसे योनि सुकड़ जाती है। - . (३) बैंगनको लाकर सुखा लो । सूखनेपर पीसकर चूर्ण कर. लो। इस चूर्ण को भगमें रखनेसे भग सुकड़कर तंग हो जाती है। (४) आककी जड़ लाकर स्त्री अपने पेशाबमें पीस ले । फिर शफा करके, दो घण्टे बाद मैथुन करे । भग ऐसी तंग हो जायगी कि लिख नहीं सकते। ..(५) सूखे कैंचुए भगमें मलनेसे बड़ा आनन्द आता है। - (६) बबूलकी छाल, झड़बेरीकी छाल, मौलसरीकी छाल, कचनारकी छाल, और अनारकी छाल--सबको बराबर-बराबर लेकर कुचल लो और एक हाँडीमें अन्दाजका पानी भरकर जोश दो । औटाते समय हाँडीमें एक सफ़ेद कपड़ा भी डाल दो। जब कपड़ेपर रंग चढ़ जाय, उसे निकाल लो । इस काढ़ेसे योनिको खूब धोओ । इनके बाद, इसी काढ़ेमें रंगे हुए कपड़ेको भगमें रख लो। इस तरह करनेसे योनि सुकड़कर छोकरीकी-सी हो जाती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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