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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । (११) अत्यानन्दा । (१२) कर्णिनी (१३) चरणा... ये पाँच योनिरोग कफके दोषसे होते हैं। (१४) अतिचरणा (१५) कफजा (१६) षंडी ये पाँचों योनिरोग तीनों दोषोंसे होते हैं। (१७) अण्डिनी ... ( १८ ) महती . (१६) सूचीवकत्रा (२०) त्रिदोषजा योनिरोगोंके निदान-कारण । "सुश्रुत' में योनिरोगोंके निम्नलिखित कारण लिखे हैं:(१) मिथ्याचार। (२) मिथ्या विहार । (३) दुष्ट आर्तव । (४) वीर्यदोष । (५) दैवेच्छा। । आजकल आयुर्वेदकी शिक्षा न पानेसे मर्दोकी तरह स्त्रियाँ भी समय-बेसमय खाती, दूध और मछली प्रभृति विरुद्ध पदार्थ और प्रकृतिविरुद्ध भोजन करतीं, गरम मिजाज होनेपर भी गरम भोजन करतीं, सर्द मिजाज होनेपर भी सर्द पदार्थ खाती, दिन-रात मैथुन करतीं, व्रत-उपवास करती तथा खूब क्रोध और चिन्ता करती हैं। इन कारणों एवं इसी तरहके और भी कारणोंसे उनका आर्तव या मासिक खून गरम होकर, उपरोक्त बीस प्रकारके योनिरोग करता है । इसके सिवा, माँ-बापके वीर्य-दोषसे जिस कन्याका जन्म होता है, उसे भी इन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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