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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RAMAIRRIERRISMANEERINK * योनि-रोग-चिकित्सा। योनि रोगोंकी किस्में। Years सलमें योनिरोग, प्रदर रोग और आर्तव रोग एवं स्त्री अ पुरुषोंके रज और वीर्यके शुद्ध, निर्दोष और पुष्ट न होने Hasiy वगैरः वगैरः कारणोंसे आज भारतके लाखों घर. सन्तानहीन हो रहे हैं। मूर्ख लोग गण्डा-ताबीज़ और भभूतके लिये वृथा ठगाते और दुःख भोगते हैं; पर असल उपाय नहीं करते, इसीसे उनकी मनोकामना पूरी नहीं होती । अतः हम योनि-रोगोंके निदान, कारण और लक्षण लिखते हैं । आर्तव रोग या नष्टार्तवकी चिकित्सा इसके. बाद लिखेंगे। ____ "सुश्रुत" में और "माधव निदान" आदि ग्रन्थोंमें योनिरोग-भगके रोग--बीस प्रकारके लिखे हैं। उनके नाम ये हैं (१) उदावृता (२) बन्ध्या (३) विप्लुता . ये पाँच योनिरोग वायु-दोषसे होते हैं। (४) परिप्लुता (५) वातला (६) लोहिताक्षरा (७) प्रस्र सिनी (८) वामनी ये पाँच योनिरोग पित्त-दोषसे होते हैं। (६) पुत्रधी ..(१०) पित्तला For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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