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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ चिकित्सा-चन्द्रोदय । (६६) आमलेके बीजोंका कल्क बनाकर; यानी उन्हें जलके साथ सिलपर पीसकर, जलमें मिला दो। ऊपरसे शहद और मिश्री मिला लो । इस जलके पीनेसे ३ दिनमें श्वेत प्रदर नष्ट हो जाता है। - (६७) त्रिफला, देवदारु, बच, अडूसा, खीलें, दूध, पृश्निपर्णी और लजवन्ती-इनका काढ़ा बनाकर, शीतल करके, फिर शहद मिलाकर पीनेसे सब तरहके प्रदर-रोग आराम हो जाते हैं। . (६८) खंज पक्षीकी आँखोंको सिलपर पीसकर, ललाटपर लेप करनेसे प्रदर-रोग अवश्य चला जाता है। इस चीज़में यह अद्भुत सामर्थ्य है। (६६) बथुएकी जड़को दूध या पानीमें पकाकर, ३ दिन तक, पीनेसे प्रदर रोग चला जाता है। - (७०) कमलकी जड़को दूध या पानीमें पकाकर, ३ दिन पीनेसे प्रदर-रोग शान्त हो जाता है। (७१) नीलकमल, भसींडा ( कमल-कन्द ), लाल शालिचाँवल, अजवायन, गेरू और जवासा--इन सबको बराबर-बराबर लेकर, पीस-छानकर, शहदमें मिलाकर पीनेसे प्रदर-रोग नष्ट हो जाता है। (७२) खिरेंटीकी जड़को दूधमें पीसकर, शहदमें मिलाकर पीनेसे प्रदर-रोग नाश हो जाता है। (७३) कुशाकी जड़ और खिरेंटीकी जड़को चाँवलोंके जलमें पीसकर पीनेसे रक्त प्रदर नाश हो जाता है। - (७४) चूहेकी विष्ठाको जलाकर दूध या पानीके साथ पीनेसे रक्तप्रदर नष्ट हो जाता है। (७५) तृणपंचमूलके काढ़ेमें मिश्री मिलाकर पीनेसे प्रदर-रोग नाश हो जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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