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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxmrrrrrrrrrrrr D स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग। ३५५ शहदमें उसके लड्डू बना लो। इन लड्डुओंके खानेसे प्रदर रोग नाश हो जाता है। (५६) दारुहल्दी, रसौत, चिरायता, अड़सा, नागरमोथा, बेलगिरी, शहद, लाल चन्दन और पाकके फूल-इन सबका काढ़ा बनाकर, और काढ़ेमें शहद मिलाकर पीनेसे वेदना युक्त लाल और सफेद प्रदर नाश हो जाता है। ___(६०) सूअरका मांस-रस, बकरेका मांस-रस और कुलथीका रस इनमें 'दही" और अधिकतर "हल्दी" मिलाकर खानेसे वातज-प्रदर शान्त हो जाता है। (६१) ईखका रस पीनेसे पित्तज-प्रदर आराम हो जाता है। . (६२) चन्दन, खस, पतंग, मुलेठी, नीलकमल, खीरे और ककड़ीके बीज, धायके फूल, केलेकी फली, बेर, लाख, बड़के अंकुर, पद्माखः और कमल-केशर-इन सबको बराबर-बराबर लेकर सिलपर पानीके साथ पीसकर लुगदी बना लो । इस लुगदीमें "शहद" मिलाकर, चाँवलोंके जलके साथ पीनेसे, तीन दिनमें, पित्तज-प्रदर शान्त हो जाता है। (६३) मिश्री, शहद, मुलेठी, सोंठ और दही-इन सबको एकत्र मिलाकर खानेसे पित्त-जनित प्रदर आराम हो जाता है। . . : (६४) काकोली, कमल, कमलकन्द, कमल-नाल और कदम्बका चूर्ण-इनको दूध, मिश्री और शहदमें मिलाकर खानेसे पित्तज-प्रदर आराम हो जाता है। (६५) मुलेठी, त्रिफला, लोध, ऊँटकटारा, सोरठकी मिट्टी, शहद, मदिरा, नीम और गिलोय-इन सबको मिलाकर सेवन करनेसे कफका प्रदर रोग आराम हो जाता है। नोट-सोरठकी मिट्टीको संस्कृतमें "गोपीचन्दन" कहते हैं । सोरठकी मिट्टी न मिले तो फिटकरी ले सकते हो । दोनोंमें समान गुण हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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