SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग। ३४६ नोट-संस्कृतमें मुद्गपर्णी, हिन्दीमें मुगवन, बँगलामें वनमाष या मुगानि, गुजरातीमें जंगली मग और मरहटीमें मुगबेल या रानमूग कहते हैं। इसकी बेल मूगके समान होती है, पत्ते भी मूंगके जैसे हरे-हरे होते हैं और फूल पीले आते हैं। फलियाँ भी मूंगके जैसी ही होती हैं। यह वनके मूग हैं । मुगवनका पंचाङ्ग दवाके काम आता है । मात्रा २ माशेकी है। (२४ ) नीमका तेल गायके दूधमें मिलाकर पीनेसे प्रदर-रोग आराम हो जाता है । परीक्षित है। (२५) मुलेठी, पद्माख, ककड़ीके वीज, शतावर, विदारीकन्द और ईखकी जड़--इन सब दवाओंको महीन पीसकर, १०० बार धुले हुए घीमें मिला दो । इस दवाके योनि, मस्तक और शरीरपर लेप करनेसे प्रदर-रोग आराम हो जाता है। . नोट-किसी और खानेकी दवाके साथ इस दवाका भी लेप कराकर आश्चर्यफल देखा है। अकेली इस दवासे काम नहीं लिया। (२६) मँजीठ, धायके फूल, लोध और नीलकमल--इनको पीसछानकर “दूध के साथ पीनेसे प्रदर-रोग आराम हो जाता है । परीक्षित है। (२७) दो तोले अशोककी छालको कुचलकर, एक मिट्टीकी हाँडीमें, पाव-भर जलके साथ जोश दो । जब चौथाई जल रह जाय, उतारकर, आधाव दूधमें मिलाकर फिर औटाओ । जब काढ़ा-काढ़ा जल जाय, उतारकर रख दो । जब यह आप ही शीतल हो जाय, पी लो। इसको सवेरेके समय पीनेसे बड़ा लाभ होता है। यह योग घोर प्रदर को आराम करता है। परीक्षित है। हमें यह नुसखा बहुत पसन्द है । ___ (२८) रोहितक या रोहिडेकी जड़को सिलपर पीसकर खानेसे हल्के लाल रंगका प्रदर आराम होता है । परीक्षित है। - नोट-इस नुसनको वृन्द, चक्रदत्त और वैद्यविनोदकारने पाण्डु प्रदर (कफजनित श्वेतप्रदर ) पर लिखा है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy