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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ - चिकित्सा-चन्द्रोदय । हृदय, पसली, पीठ और चूतड़ोंमें बड़े ज़ोरोंसे वेदना या दर्द पैदा करता है। वातजनित प्रदरमें वायुका काप प्रबलतासे होता है और वेदना या दर्द करना वायुका काम है, इसीसे बादीके प्रदरमें, कमर और पीठ वगरःमें बड़ा दर्द होता है। पित्तज-प्रदरके लक्षण । अगर पित्तके कारणसे प्रदर-रोग होता है, तो पीला, नीला, काला, लाल और गरम खून बारम्बार बहता है, इसमें पित्तकी वजहसे दाह - जलन आदि पीड़ायें होती हैं। नोट--खट्ट, नमकीन, खारी और गरम पदार्थों के अत्यन्त सेवन करने से पित्त कुपित होता और पित्तजनित या पित्तका प्रदर पैदा करता है। पित्त-प्रदरमें खून कुछ-कुछ नीला, पीला, काला और अत्यन्त गरम होता है; बारम्बार पीड़ा होती और खून गिरता है । इसके साथ जलन, प्यास, माह, भ्रम और ज्वर,-- ये उपद्रव भी होते हैं। कफ़ज प्रदर के लक्षण । अगर कफसे प्रदर होता है, तो कच्चे रसवाला, सेमल वगैरके गोंद-जैसा चिकना, किसी कदर पाण्डुवर्ण और तुच्छ धान्यके धोवनके समान खून बहता है। नोट-भारी प्रभुति पदार्थों के बहुत ही ज़ियादा सेवन करने से कफ कुपित होता और कफज प्रदर-रोग पैदा करता है। इसमें खून पिच्छल या लिबलिबा, पाण्डु रंगका, भारी, चिकना और शीतल होता है तथा श्लेष्म मिले हुए खूनका स्राव होता है । पीड़ा कम होती है, पर वमन, अरुचि, हुल्लास, श्वास और खाँसी-ये कफके उपद्रव नज़र आते हैं । त्रिदोषज-प्रदर के लक्षण । अगर त्रिदोष- सन्निपात या वात-पित्त-कफ-तीनों दोषोंके कोपसे प्रदर-रोग होता है, तो शहद, घी और हरतालके रंगवाला, For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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