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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१५ बावले कुत्ते के काटेकी चिकित्सा। इसके लिये लोग उसे काँसीकी थाली, आइना, पानी और जलाशयोंसे दूर रखते हैं। वैद्यकमें भी, विष अपने-आप कुपित न हो जाय इसलिये, दवा खिलाकर स्वयं कुपित करते हैं। जब विषका नकली कोप होता है, तब रोगीको जल-रहित शीतल स्थानमें रखते हैं । वहाँ रोगीकी नक़ली या दवाके कारणसे हुई उन्मत्तता शान्त हो जाती है। "सुश्रुत में ऐसी नक़ली पागलपन करानेवाली दवा लिखी है: शरफोंकेकी जड़ १ तोले, धतूरेकी जड़ ६ माशे और चाँवल ६ माशे-इन तीनोंको चाँवलोंके पानीके साथ महीन पीसकर गोला-सा बना लो। फिर उसपर पाँच-सात धतूरके पत्ते लपेटकर पका लो और कुत्तेके काटे हुएको खिलाओ । इस दवाके पचते समय, अगर उन्मत्तता-पागलपन आदि विकार नज़र आवें, तो रोगीको जलरहित शीतल स्थानमें रख दो। इस तरह करनेसे दवाकी वजहसे उन्माद आदि विकार शान्त हो जाते हैं । अगर फिर भी कुछ विष-विकार बाक़ी रहे दीखें, तो तीन दिन या पाँच दिन बाद फिर इसी दवाकी आधी मात्रा दो। दूसरी बार दवा देनेसे सब विष नष्ट हो जायगा। जब विष एकदम नष्ट हो जाय, रोगीको स्नान कराकर, गरम दूधके साथ शालि या साँठीके चाँवलोंका भात खिलाओ । यह दवा इसलिये दी जाती है कि, विष स्वयं कुपित न हो, वरन् इस दवासे कुपित हो। क्योंकि अगर विष अपने-आप कुपित होता है, तो मनुष्य मर जाता है और अगर इस दवासे कुपित किया जाता है, तो वह शान्त होकर निःशेष हो जाता है। यह विधि बड़ी उत्तम है । वैद्योंको अवश्य करनी चाहिये । सूचना-कुत्ते के काटेके निर्विष होनेपर उसे स्नान आदि कराकर, तेज़ वमन विरेचनकी दवा देकर शुद्ध कर लेना बहुत ही ज़रूरी है, क्योंकि अगर बिना शोधन किये घाव भर भी जायगा, तो विष समय पाकर फिर कुपित हो सकता है। चूँ कि वमन-विरेचनका काम बड़ा कठिन है, अतः इस प्रकारका इलाज वैद्योंको ही करना चाहिये । वाग्भट्टने लिखा है:-- For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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