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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मक्खी-विष-चिकित्सा। २६३ . (२) दो तोले कत्था, एक तोले कपूर और आधा तोले सिन्दूरइन तीनोंको पीसकर कपड़ेमें छान लो । फिर १०१ बार घी या मक्खन काँसीकी थालीमें धो लो। शेषमें, उस पिसे-छने चूर्णको घीमें खूब मिलाकर एक दिल कर लो। इस मरहमको हर प्रकारके मच्छर, डाँस या पहाड़ी मच्छरके काटे स्थानपर मलो । इसके कई बार मलनेसे एक ही दिन में सूजन और खुजली वगैरः आराम हो जाती है। इसके सिवा, इस मरहमसे हर तरहके घाव भी आराम हो जाते हैं। खुजलीकी पीली-पीली फुन्सियाँ इससे फौरन मिट जाती हैं। जलन शान्त करने में तो यह रामवाण ही है । परीक्षित है। . (३) मच्छर, डाँस तथा अन्य छोटे-मोटे कीड़ोंके काटे स्थानपर "अर्क कपूर" लगानेसे जहर नहीं चढ़ता और सूजन फौरन उतर जाती है। नोट-अर्क कपूर बनानेकी विधि हमारी बनाई “स्वास्थ्यरक्षा में लिखी है। यह हर नगरमें बना-बनाया भी मिलता है। (४) अगर कानमें डाँस या मच्छर घुस जाय, ता कसौंदीके पत्तोंका रस निकालकर कानमें डालो । वह मरकर निकल आवेगा। नोट--मकोयके पत्तोंका रस कानमें टपकानेसे भी सब तरहके कीड़े मरकर निकल आते हैं। मक्खीके विषकी चिकित्सा । सुश्रुत और चरकमें लिखा है, मक्खियाँ छै प्रकारकी होती हैं:(१) कान्तारिका बनकी मक्खी। ...(२) कृष्णा ... । काली मक्खी। (३) पिंगलिका • पीली मक्खी. For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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