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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..२६० । चिकित्सा-चन्द्रोदय । (८) कैथके रसको, गोबरके रस और शहद में मिलाकर, चाटनेसे चूहेका विष नाश हो जाता है। (E) गोरख-ककड़ी, बेलगिरी, काकोलीकी जड़, तिल और मिनी- इन सबको एकत्र पीसकर, शहद और घीमें मिलाकर, सेवन करनेसे चूहेका विष नष्ट हो जाता है। (१०) बेलगिरी, काकोलीकी जड़, कोयल और तिल-इनको शहद और घीमें मिलाकर सेवन करनेसे चूहेका विष नष्ट हो जाता है । (११) चौलाईकी जड़को पानीके साथ पीसकर कल्क-लुगदी बना लो। फिर लुगदीसे चौगुना घी और घीसे चौगुना दूध लेकर घी पका लो । इस घीके सेवन करनेसे चूहेका विष तत्काल नाश हो जाता है। . (१२) सफ़ेद पुनर्नवेकी जड़ और त्रिफला- इनको पीस-छानकर शहद में मिलाकर पीनेसे मूषक-विष दूर हो जाता है। (१३) सोंठ, मिर्च, पीपर, कूट, दारुहल्दी, मुलैठी, सेंधानोन, संचरनोन, मालती, नागकेशर और काकोल्यादि मधुरगणकी जितनी दवाएँ मिलें-सबको “कैथके रसमें" पीसकर, गायके सींगमें भरकर और उसीसे बन्द करके १५ दिन रखो। इस अगदसे विष तो बहुत तरहके नाश होते हैं, पर चूहेके विषपर तो यह अगद प्रधान ही है । 1889825 XGGeodesedooX otoxos GeGreetouroGrotkoorcaroooooooooo १९७eam मच्छरके विषकी चिकित्सा। सुश्रुतमें मच्छर पाँच तरहके लिखे हैं:(१) समन्दरके मच्छर। (२) परिमण्डल मच्छर = गोल बाँधकर रहनेवाले। (३) हस्ति मच्छर = बड़े मोटे मच्छर या डाँस । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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